संदेश

जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सच खांटी सच

सच खांटी सच मौन है मीठा , मुखर तीखा मगर बेचैन है जीभ क्या करू ! कुछ तीखा कहने का मन है , कह दू कुछ - जो है तीखा पर खांटी सच आग लगे ऐसा कटु क्या कहू ? कह दूँ या न कहू..................... इसलिए "अनुराग आग्नेय " कहते हैं मेरे मुह पर मत बोलो की स्लिप लगा दो वरना मै बोल पडूंगा परतें डर परतें खोल पडूँगा बेनकाब कर दूंगा नंगा नाच नचा दूंगा सारी औकात बता दूंगा  बांबी में हाथ अगर डाला तो ऐसा डंक लगेगा  दंश न उसका भूल सकोगे जीवन भर  सच यह है की कल रात एक धर्म के ठेकेदार ने धर्मस्थल पर : तीन साल की बच्ची के साथ अपनी हवस मिटाई एक माँ ने चार दाने चावल के लिए अपने दूधमुहे लाल को बेच दिया और सच....................... मत सुनो .................. क्या करोगे ! तुम भी तो ओह! कहकर पृष्ठ पलट दोगे.....

यादें

यादें  न जाने जोड़ना अच्छा है या घटना यादों में सिर्फ जोड़ा जा सकता है घटाया नहीं लेकिन यादों का स्वाद क्या बदला जा सकता है ? नहीं न !!!!!!!!! चाहती हूँ यादों  को जोड़ती जाऊँ कुछ लोरियाँ , मीठी रोटियां , बातों की चाशनी ऐसे मर्तबानो में भर दूँ की जब भी खोलूँ  एकदम ताजा रहे; तुम भी दो न मेरे हाँथ में एक मीठी झप्पी ,  एक भीना स्पर्श कुछ ताजे फूल जैसे डेल थे मेरे गले में कभी  आओ न ,  हमारा साथ एक जिल्द में नत्थी कर दूँ उस  मे कुछ सलमे सितारे सजा दूँ की जब जब खोले हम साथ साथ मिलें बरसो बाद , सदियों बाद तुम्हे पता है ! तुम्हारी चुप्पी का स्वाद कैसा है??? कसैला , कड़वा , अनचाहा फिर भी , ज्यादा  मीठे के साथ थोड़ा कड़वा भाता है लेकिन ज्यादा ; हजम नहीं होता !!!!!

उम्मीद

 उम्मीद  ए क तिनका धूप के बावजूद बची है रोशनी की थोड़ी सी उम्मीद कि बंजर घोषित धरती पर भी उग आता है कभी कभी बबूल सा कोई पौधा और आने जाने वाले पथिकों के लिये बन जाता है थोड़ी देर सुस्ता लेने का छोटा सा आसरा

Gujarish

चित्र

Milan

चित्र