सच खांटी सच
सच खांटी सच मौन है मीठा , मुखर तीखा मगर बेचैन है जीभ क्या करू ! कुछ तीखा कहने का मन है , कह दू कुछ - जो है तीखा पर खांटी सच आग लगे ऐसा कटु क्या कहू ? कह दूँ या न कहू..................... इसलिए "अनुराग आग्नेय " कहते हैं मेरे मुह पर मत बोलो की स्लिप लगा दो वरना मै बोल पडूंगा परतें डर परतें खोल पडूँगा बेनकाब कर दूंगा नंगा नाच नचा दूंगा सारी औकात बता दूंगा बांबी में हाथ अगर डाला तो ऐसा डंक लगेगा दंश न उसका भूल सकोगे जीवन भर सच यह है की कल रात एक धर्म के ठेकेदार ने धर्मस्थल पर : तीन साल की बच्ची के साथ अपनी हवस मिटाई एक माँ ने चार दाने चावल के लिए अपने दूधमुहे लाल को बेच दिया और सच....................... मत सुनो .................. क्या करोगे ! तुम भी तो ओह! कहकर पृष्ठ पलट दोगे.....