ओ बेआवाज़ लड़कियों !
बेआवाज़ लड़कियों ! उठों न, देखो तुम्हारे रुदन में........ कितनी किलकारियां खामोश हैं. कितनी परियां गुमनाम हैं तुम्हारे वज़ूद में. तुम्हारी साँसे लाशों को भी ज़िंदगी बख़्श देती हैं.... ओ बेआवाज़ लड़कियों! एक बार कहो जो तुमने अब तक नहीं कहा........ कहो जो बंद पड़ा है तुम्हारे तहखाने में....... कहो कि दुनिया बेनूर हो रही है तुम्हारे शब्दों के बगैर। ...... इस मरघट सन्नाटे में अपनी आवाज़ का संगीत छेड़ो। अपने शब्दों का चुम्बन जड़ दो हर अवसादग्रस्त मस्तक पर. उल्लास का वरक लगा दो हर ख़त्म होती उम्मीद पर. ओ बेआवाज़ लड़कियों ! बोलो, कहो अनकही कहानियां इससे पहले कि ये समाज तुम्हारे ताबूत पर अंतिम कील ठोंक दे। (pic - google )