संदेश

नवंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खरीद -फ़रोख़्त (#Human trafficking)

बिकना मुश्किल नहीं न ही बेचना, मुश्किल है गायब हो जाना, लुभावने वादों और पैसों की खनक खींच लेती है इंसान को बाज़ार में, गांवो से गायब हो रही हैं बेटियां, बेचे जा रहे हैं बच्चे, आंखों से लुढ़कने वाले आँसू रेत का दामन थाम बस गए हैं आंखों में, लौट आने की उम्मीद में, गायब हो रही हैं पगडंडियां, उदास हैं अम्मी और अब्बू! न पैसे न औलाद, कोई नहीं लौटता, निगल लेती है मजबूरी, गुम हो रही है पानी से तरंग ख़ाली गांव, ख़ाली घर सन्नाटे के सफ़र पर चल निकला है आदमी.... कि बाज़ार  निगल गया है रिश्तों की गर्माहट। #AparnaBajpai