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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रासायनिक विध्वंश की आशंका (Fears of chemical destruction)

घनघोर अंधेरी रात में जब घुमड़ते हैं मेघ दिल थर- थर काँप उठता है। सात समंदर पार बैठे हमारे अपने लोगों के सिर पर कंही बरस न रहे हों गोले - बारूद, आतताइयों के बनाये मंसूबों से उजाड़ न हो रही हों मासूम बच्चों की जिंदगियां। जिस प्रकार बह रहा है गुजरात , झेल रहे है पूर्वोत्तर राज्य बाढ़ की विभीषिका , उस पराये से देश में; रासायनिक विध्वंश की बाढ़ न आ गयी हो, बह न गयी हो मानवता। जब युद्धोन्माद सिर चढ़ कर बोलता है, देश के नमक हराम शाशक भूल जाते हैं मानवीय व्यवहार, सामने वाले को कमतर समझने की भूल करके; अपने ही नागरिकों को देने लगते हैं मृत्युदंड। बरसते हुए मेघ शांत नहीं कर पाते उन्माद की ज्वाला। ऐसे में एक आम नागरिक कर ही क्या सकता है सिवाय थर- थर कांपने के; और बनाये रखने के उम्मीद, सही सलामत लौट आयेंगे वे लोग; जो गए तो थे रोजी- रोजगार के लिए , आज वंहा काल के गुलाम बन कर रह गए हैं।

सोलह श्रंगार

नख से सिख तक सोलह श्रंगार से सजी तुम्हारी अर्धान्गिनी; तुमने पलट कर भी नहीं देखा! तुम्हे पता भी है इन श्रंगारों की कीमत, नाक , कान, हाथ, पैर शरीर का एक- एक अंग रखना पड़ता है गिरवी दूसरे के नाम, हर कदम ,हर हरकत जैसे नुमाइश करता है दोनो का रिश्ता. औरत का वज़ूद पैबंद लगे पर्दे सा डोलता है दरवाजे के दरम्यान और दुनिया उसे सतीसावित्रीके मापदन्डो पर तौलती है. अपना मान- सम्मान अस्मिता, अस्तित्व सब कुछ  उसके नाम करने के बावजूद कंहा बन पाती है सच्चे मायने में अर्धान्गिनी; कि धर्म , अर्थ और सम्मान में पुरुष हमेशा ही गिना जाता है उससे ऊपर, दर्द , तकलीफ़ और ज़ज़्ब में औरत पुरुष से आगे खडी होती है. तन के पोर-पोर को सोलह श्रंगारों में बांध कर भी कभी कभी बांध नहीं पाती पति का दिल और वह; पतीक्षारत रहती है जीवन भर सच्ची अर्धान्गिनी सा सम्मान पाने कि लिये.

शौक-ए-हमसफर

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#Lalu yadav & #Niteesh kumar

#Lalu Yadav वोट दिये हम तुमको अपनी , तुम क्यों धोखा खाये ? बोलो तो लालू यादव. तेजस्वी से कहकर तुमने क्यों न इस्तीफ़ा दिलाया बोलो तो लालू यादव? कहा से इतना पैसा आया क्यों नहीं सबको बताये ? बोलो तो लालू यादव . किसका कुर्ता साफ़ यंहा है कौन न संपत्ति बनाये? बोलो तो लालू यादव. सफ़ाई से माल हड़पते ऐसे दिन क्यों लाये? बोलो तो लालू यादव . तेज प्रताप , तेजस्वी के संग मीसा को भी फन्साये बोलो तो लालू यादव. #Niteesh Kumar दो - दो मोदी के चक्कर में तुम कबसे थे आये ? बोलो तो नीतिश भैया. कल इस्तीफ़ा आज शपथ ली कब सब सेट कर आये? बोलो तो नीतिश भैया. लालू से तुम गले मिले थे मोदी से हाथ मिलाये कैसे हुआ नितीश भैया? तुम कहते हो भ्रष्ट नहीं मै कैसे बहुमत लाये बोलो तो नितीश भैया?

बस इतनी सी कहानी

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Truth can never be killed (सच कभी मारा नहीं जा सकता)

मेरे साथियों ! आओ भोंक दो मेरे सीने में अपने पैने खंज़र , टुकड़े - टुकड़े कर दो मेरे, बहा दो मेरे जिस्म से खून की धार फिर भी नहीं मरूंगा मै ! मुझे मारने का दिन-रात षड्यंत्र करने वालों , ओढ़ लो स्वार्थ की सफ़ेद चादर , काली पट्टियां बाँध लो अपनी आँखों पर देने लगो न्याय विक्रमादित्य की तरह ; फिर भी नहीं मार पाओगे तुम : उस सच को , जो ज़िंदा रखेगा मुझे तुम्हारे आसपास , मेरी आवाज़ तुम्हेु फुफकारगी , सांय - सांय करने लगेंगे तुम्हारे कान , मेरा सच भीतर ही भीतर खोखला कर देगा तुम्हें , तुम ज़िंदा लाश बन घूमते रहोगे यंहा - वंहा, और मैं ; मरकर भी जीवित रहूंगा अपने सच मे क्योंकि सच कभी मारा नहीं जा सकता।

Time never be old ( बूढ़ा नहीं होता समय )

बच्चे  हमेशा संजोते रहते है कुछ न कुछ टूटी प्लास्टिक , कांच की बोतलें कूड़े में बिखरे कीमती सामान , भीख के कटोरे और  कूड़े के बोरे में; शाम को ले आते हैं बच्चे ; माँ बाप के लिए रोटी , भाई बहन क लिए टॉफी : और अपने लिए ! एक और आने वाला दिन। हर आने वाले दिन में वो छुपाकर रखते हैं , माँ के सपने , बाप की उम्मीद , देश का भविष्य और दुनिया की आस। बच्चे नहीं थकते कभी जानते है वे कि कोई भी आने वाला दिन बूढ़ा नहीं होता।

जिंदा रहने की ख्वाहिश

मेरे जीवन के कटुतम रंगों में तुम्हारा रंग सबसे मधुर  है . जीवन के संघर्षों के धूसर लम्हों में तुम हरियाली की तरह आती हो और मुझे सुर्ख कर जाती हो . सब कुछ ख़त्म होने की कगार पर भी तुम मुझे डटे रहने का हौसला दे जाती हो . तुम्हारी जाती ज़िंदगी के बारे में अनजान हूँ फिर भी ; ज़न्मों की पहचान लगती है हमारी . तुम्हारी खिलखिलाहट को बस एक नज़र देखकर हजारों मौतों का नज़ारा भूल जाता हूँ . हाँ मै मुर्दा लोगों को उनके अंतिम स्थान तक ले जाता हूँ फिर भी रोज़ जिंदा रहने की ख्वाहिश रखता हूँ .

देखो बाढ़ आयी

उमड़ रहीं नदियाँ बह रहे हैंबाँध , टूट रहे सपने ढह रहे मकान। राशन बह गया बह गयी किताब बापू कब तक थामें रहेंगे उनमे नहीं ताब। पानी अक्षर पी रहा कुत्ता रोटी खाय भूखी बिटिया देखकर हाहाकार मचाय। चारों  तरफ प्रलय है मच रहा है शोर कौन कहाँ बैठेगा कंही नहीं ठौर। जूझती बस्तियां हैं नींद में सरकार कौन कंहा जाय अब सबका बंटाधार।

२ प्रेम कवितायें

१- तुमने कहा पूजा मै चुप रही , तुमने कहा आशा मै मुस्कुराई , तुमने कहा नैना मैंने तुम्हे देखा , तुमने कहा खुशी मै खिलखिलाई, तुमने कहा धरती मैंने थाम लिया तुमको , जब मैंने कहा आकाश तुम दूर होते गए , इतनी दूर कि मै तुम्हे छू न सकूं तुमसे कुछ कह न सकूं देती रहूँ दुनिया को भुलावा क्षितिज की तरह. कि धरती और आकाश एक हो गए ! २ - मैंने कहा था मत वादा करो मुझसे अपने वापस लौट आने का न जाने कब बदल जाए मेरा पता ; और तुम भटकते रहो इधर उधर अपने गतव्य  तक न पंहुच पाने वाले पत्र  की भांति।

नियति

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Breath

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No Holiday in women's life

संडे हो या मंडे नहीं है कोई हॉलिडे काम किये जा घर के अंदर नहीं है कोई छुट्टी जी। कमर टूटती तो टूटने दो पैर लरजते है लरजने दो सर फटना तो आम बात है क्योँ बनती हो डॉक्टर जी। आज नहीं कुछ नया बनाया वही पुराना आलू बैगन होता है इतवार हमारा क्यों करती हो खटपट जी। झाड़ू पोछा ,चौका बर्तन इसमें कौन सी मेहनत है ? क्यों थकती हो बात बात में घर में करती झिकझिक जी। नया नया कुछ रोज़ बनाओ कपड़े धो दो इस्त्री कर दो बच्चों का इतवार निराला उनको थोड़ी फुर्सत दे दो। मेरे पास भी बैठो जरा मेरा थोड़ा दिल बहलाओ पानी बरसे बाहर  झम झम बात बात में चाय बनाओ। छुट्टी लेकर क्या कर लोगी काम धाम तुम क्या करती हो ? घर में रहती खाट तोड़ती हर दम  सोती रहती हो. सन्डे हो या मंडे नहीं है कोई छुट्टी जी। नहीं है कोई छुट्टी जी।  

#किसान ने की आत्महत्या (काश... बचा पाती तुम्हें अखबार की सुर्खियाँ बनाने से)

काश   मै दे पाती तुम्हे थोड़ी सी बारिश , थोड़ी सी हवा, एक नदी की रवानी , एक फूल की कहानी, काश सौप पाती   तुम्हे, एक पूरा का पूरा मौसम; जो लहलहाता तुम्हारे खेत. काश रख पाती कुछ रोटियां तुम्हारी   थाली में; थोड़ा सा नून , थोड़ा सा तेल, बढ़ा पाती    तुम्हारी खुराक में, काश कागज के कुछ टुकड़े बन; चुका  पाती    तुम्हारा कर्ज,   जिसके लिए तुम रात रात भर नहीं सोते , काश बन पाती तुम्हारी ढाल बैंक वालों के सामने  बचा पाती तुम्हारा चूर चूर होता स्वाभिमान  काश... बचा पाती तुम्हें अखबार की सुर्खियाँ बनने से ; कि आज एक और किसान ने आत्महत्या कर ली . 

जाति पूछ लो राष्ट्रपति की

जाति न पूछो साधु की जाति न पूछो बाम्हन की जाति न पुछो क्षत्रिय की जाति पूछ लो नेता की जाति पूछ लो कार्यकर्ता की जाति पूछ लो मंत्री की जाति पूछ लो सांसद की जाति पूछ लो विधायक की जाति पूछ लो पंच की जाति पूछ लो सरपंच की जाति पूछ लो प्रधानमंत्री की और जाति पूछ लो राष्ट्रपति की क्योंकि जाति जाने बिना चुनाव कैसे होगा चुनाव के बिना लोकतंत्र कैसा? जाति न पूछो गरीब की जाति न पूछो मजदूर की जाति न पूछो भूखे की जाति न पूछो नंगे की क्योंकि अच्छे लोकतंत्र में जातिवाद एक कलंक है

पुरानी किताब हूं

मै रीति हूं, रिवाज़ हूं ,पुराना हिसाब हूं, बंद दरवाजों में पडा पुराना असबाब हूं. कीमत कुछ भी नहीं मेरी फिरभी ; हाथ आयी अचानक पुरानी किताब हूं. रख लो सन्भाल कर या बेच दो रद्दी में मैं पुस्तैनी मकान में पडा दादा जी का ख्वाब हूं.

अरे मियां! खुश रहना है तो जुगाड़ भिड़ाओ

बड़ेअच्छे आदमी हो! दूसरों की ही सुनते हो, </रे> रे अपनी क्योँ नहीं कहते हो? रे सिर पर अच्छाइयों का भार लाद कर क्या कर लोगे ? हमेशा भीतर भीतर ही मरोगे . कौन अवार्ड देने आ रहा है? अच्छे हो या बुरे किसी के बाप का क्या जा रहा है. तुम्हारे ही बीबी बच्चे होंगे परेशान तुम सोचते हो उनको खुश रखना नहीं है आसान. सोच तुम्हारी भी ठीक ही है ; घर में कितना भी रख दो कम ही होता है बच्चों का मन कब भरता है . अभी तो जवान हो सोचते हो अपना भी मकान हो, मकान-मालिक रोज किच-किच करता है जब बाथरूम में घुसते हो तभी पानी बंद करता है . इमानदारी का अब ज़माना नहीं है , दो- चार पैसों से कुछ होना नहीं है . अपने आप को आइना कब तक दिखाओगे? बच्चों को भूखे पेट कब तक सुलाओगे? पत्नी हर रोज खाली डिब्बे ठनठनायेगी, अंततोगत्वा तुम्हारा ही सिर खायेगी . अरे अपने देश के नेताओं से कुछ तो सीखो , दस बारह फ्लैट न सही एक मकान ही बना लो. अरे मियां! खुश रहना है तो जुगाड़ भिड़ाओ किसी पार्टी के कार्यकर्त्ता बन जाओ, नेता जी के पीछे-पीछे पूंछ हिलाओ. घर तो घर गाड़ी भी मिल

जलन

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नेतागिरी

इसकी टोपी उसके सिर उसकी टोपी इसके सिर कंहा से सीखा ? अरे क्या कह रहे है भैया ! पुरखों से यही धंधा तो करते आ रहे है नेतागिरी तो हमारे खून में है .........

उठो राजरानी !

उठो राजरानी ! कड़वी बातों का रास लो, तानों की माला गूंथो, कोई हाथ उठा दे तो प्यार समझो। पिया के घर जाने का तुम्हे की शौक़ था। सजने संवारने का तुम्हे ही शौक था। अब लो ! अपने माथे पर नीलशाह का टीका लगाओ, कलाई पर टूटी हुई चूड़ियों की मेंहदी  सजाओ , अकड़ी हुई कमर पर करधनी पहनो, पाज़ेब में मर्यादा की बेड़िया बजाओ। उठो राजरानी ! अपने सच का सामना करो, अरे अब तो आँखे खोले! प्यार और हिंसा में फर्क समझो ! अरे अब तो चुगलियां बंद करो, अपने जैसों से हाथ मिलाओ' अपनी क्षमता का परहम लहराओ, उठो राजरानी ! जरा जोश में आओ ! अपनी क्षमता का परहम लहराओ। अपनी क्षमता का परहम लहराओ।

एक पत्नी की पति से शिकायत

बड़े बेपरवाह हो ! सुनते ही नहीं  क्या कह रही हूँ ? क्योँ लड़ रही हूँ ? गुनते ही नहीं।  आटा नहीं है दाल ख़त्म  रसोई से चीनी की मिठास जाने कब से गायब है  तेल की तो बात ही छोड़ दो  अब तो नमक के भी लाले है ।  काम पर जाते हो  पैसे कंहा उड़ाते हो  दारु की बोतल जेब में रख  घर क्यों ले आते हो ? बच्चे बड़े हो रहे  क्या सोचेंगे? उन्हें क्या हम यही सिखाएंगे।  कपड़ों  पर पैबंद लग गए  बर्तन धीरे धीरे बिक  गए  अब चादर भी नहीं है सिर पर कब चेतोगे ?  कुछ पैसे इधर भी फेंक दे दो   कुछ तो बचाऊं , कुछ तो संवारूँ  बच्चों को भर पेट खिलाऊँ  जरुरत पर दवा  तो ले आऊं।  तुम क्या जानो ! भूखा बच्चा जब रोता है  रात रात भर छाती नोचता है  तुम तो टुन्न पड़े रहते हो  भूखे पेट गज़ब सोते हो  मेरी ही किस्मत फूटी थी  जो तुम मिल गए  प्रेम भरे दिन न जाने कब के फिर गए।  तुम कहते हो मै लड़ती हूँ  अपने हक़ की ही कहती हूँ  सुनो न सुनो मर्जी तेरी  जब तक ध्यान नहीं दोगे तुम  मै तो कहूंगी  तुमसे नहीं तो किससे लड़ूंगी ??  

पूर्णता की ओर

किसी के आने का इंतजार, देखने और मिलने की चाहत, बीतते समय का डर, कल में कुछ और नया जुड़ जाने की संभावना, एहसासो के मर जाने की चिंता , जीत कर भी सब कुछ हार जाने की चाहत , उपहार में अनचाही चीजें मिलने की खुशी, मुस्कुराते हुए अश्कों को पोछने की अभिलाषा और ; मौन के मुखर होने की प्रतीक्षा क्या यही सब नहीं चलता रहता है मन में ; जब तक अपनी पूर्णता की ओर नहीं बढ़ जाता। 

बंद कर लो अपने आप को

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मेरे देश की हवाओं से कतरा कतरा खून रिसता है

मेरे देश की हवाओं से कतरा कतरा खून रिसता  है, परिंदों की उड़ान ज़ख़्मी हो गयी है, हर साज़ से  सिर्फ आंशुओं की आवाज़ निकलती  है। हर माँ दिन रात बेटों  की सलामती की दुवायें मागती है, और हर बच्चा अब्बू के लौटने की राह देखता है। उस अपने से देश में भी कुछ ऐसा ही नज़ारा है, सुख चैन , नीद खुशी सब चिता की आग पर जल गए है. अरे शांति के रखवालों ! ज़रा आवाज़ निकालो, दोनों देशों की राजनीति में भूकंप लाओ, ज़मीदोज़ कर दो युद्ध की मंशाओं और तैयारियों को ; कि सरहदों पर सेना की जरूरत न हो, और विश्व भर के रक्षा हथियारों को समुद्र में फेक दिया जाय. जब युद्ध के साधन ही न होंगे , तो कैसा युद्ध ? कैसी अशांति जब लड़ने का दिल करेगा तो एकदूसरे को गरियायेंगे थोड़ी ही देर में फिर गले मिल जायेंगे।

कविता - एक सच जो कहा नहीं जा सकता

कहो तो एक बार ये चाँद नोच कर फेंक दूं तुम्हारे क़दमों में , अपने हमसफ़र को सरे राह छोड़ दूं और थाम लूं तुम्हारा दामन , बच्चों को कर दूं दर दर भटकने के लिए मजबूर. हाँ मै छोड़ सकता हूँ सारा सुकून . मै हूँ एक दीवाना , तुम्हारे प्यार में पागल रहता हूँ सराबोर तुम्हारे ही ख्यालों में , पत्नी के आगोश में भी तलाशता हूँ तुम्हारा जिस्म , अपने बच्चों की मुस्कान में तुम्हारी ही हंसी सुनाई पड़ती है मुझे, मै थक गया हूँ खुद से झूठ बोलते- बोलते और तुम हो कि दुनियादारी का वास्ता देती हो, कर दो न मुझे आज़ाद इन मर्यादा की जंजीरों से. हाँ, आज मै कुबूल कर लूँगा अपना सच अपनी पत्नी के सामने भले ही वह फेक दे मुझे अपने घर के बाहर, ज़लील करे मुझे सरे आम, मै तैयार हूँ और तुम ? झूठ के लिबास में कब तक छलोगी अपने आप को ........?   

जेब खाली

कुछ भी खरीदो , हर सामान पर टैक्स एक एक मुस्कुराहट पर टैक्स बडी खुशी पर और ज्यादा टैक्स अब इस धरती पर हवा , पानी , रंज ग़म और एहसासों पर भी टैक्स लगाने पर विचार चल रहा है. चलो जेब  खाली करो.

कचरे का ढेर

रेल के डिब्बे में कई दंपत्ति एक साथ सफर कर रहे थे . वो लोग जो भी बिकने के लिए आ रहा था साथ में खरीदकर मिलजुलकर खा रहे थे. कभी चाय , कभी चिप्स , कभी कुरकुरे, कभी मूंगफली(peanut). वे लोग सारा कचरा वंही इकठ्ठा कर रहे थे .  तभी एक छोटा सा लड़का झाड़ू लगाता हुआ आया . उसने वंहा पर का सारा कचरा साफ कर दिया. सफाई करने के बाद उसने उनलोगों से पैसे मांगे . सभी लोग एक दूसरे का मुंह देखने लगे. उस लड़के ने सबको देखा पर किसी ने उसे पैसे नहीं दिए. उनमे से एक आदमी उस लड़के से बोला " भीख मांगता है , शर्म नहीं आती . चल भाग यंहा से ". लड़का कुछ देर चुपचाप खंडा रहा फिर बोला ," आप लोग कचरे के ढेर पर बैठे थे . मैंने इस जगह को पूरा साफ किया . भीख नहीं मांग रहा अपनी मेहनत का पैसा मांग रहा हूँ. अगर हम जैसे लोग इस तरह ट्रेनों की सफाई न करें तो ये ट्रेन आप जैसों के दिमाग की तरह कचरे का ढेर बन जाएँ" .वह  चुपचाप वहाँ से चला गया . वे सभी एक दूसरे का मुंह देख रहे थे .

परिंदे

दो परिंदे मेरी मुंडेर पर बैठे है एक दूसरे के प्रेम में गुंथे हुए ..... दोनों साथ-साथ दाना लाये और खाने लगे . एक दूसरे के स्पर्श से दूर कि उन्हें : प्रेम का रिश्ता निभाने के लिए किसी अवलंब की आवश्यकता नहीं . वे साथ है अपने अस्तित्व की तरह कि उनका प्रेम साझा है , उनकी भूख साझी है , और उनकी उड़ान साझी है .

जादू

जब तुमने मेरी आँखों में झाँका एक साथ हजारों दिए रौशन हो गए . तुमने मेरी आत्मा तक पंहुचने का लम्बा सफ़र तय कर लिया और मै ; अब भी तुम्हारी पहचान के चिन्ह तलाश रही हूँ. कितनी सच्चाई तुमने थामा था मेरा हाँथ ; कि तार तार झंकृत हो गया था मेरा. कैसे कर लेते हो तुम ये जादू ? उफ़, मै भी क्या पूछ रही हूँ! तुम तो मोह से परे हो और रिश्तो से भी . जब कोई देह का बंधन न हो , कोई मर्यादा न हो तो ये मिलन इतना शाश्वत , इतना सच्चा क्योँ नहीं हो सकता ?

ज़माना

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तपिश

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Parwarish

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उधार

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इन्द्रधनुष

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भरोसा है न !

आज मैं गुज़री थी तुहारी गलियों से तुम्हारे  पदचिन्हों को बहुत ढूँढा पर मिले ही नहीं क्या तुम अपने साथ लिए गए हो अपने प्रतीक भी। कब्र के ऊपर घास उग आयी है, कई पौधे उगे हैं लेकिन फूलों की आहट  मालूम नहीं होती , क्या तुमने काँटों से प्यार किया था ? और उन्हें ही विरासत में दे दी थी ज़मीन  ... घास बहुत कंटीली है लोग रौंदने के हिम्म्त नहीं कर पाते : तुम्हे अपनी चीजों का ख्याल है और अपनी ताकत पर विष्वास भी: याद रखो विश्वास टूटता भी है, स्वार्थ का अंधड़ काफ़िला बन चुका है और वंही से गुजरने वाला है जंहा से मै गुजरी  थी तुम्हे मुझ पर भरोसा है न !

देखता है तो देखने दो

ए  सुनयना ! लग रहा है बाहर जोर की बारिश हो रही है।  हाँ भैया ,टीना पर से बूंदो की आवाज बहुत तेज आ रही है। चलो सुनयना बहुत दिन हो गए , बारिश में नहाये हुए.  ठंडी ठंढी बूंदों को अपने चेहरे पर महसूस किये हुए.  क्या भैया, इतनी रात में बारिश में हम नहाने जायेंगे. लोग देंखेंगे तो क्या कहेंगे.  अरे यही सुन सुन के तो हम बूढ़े हो गए।  जब हम किसी को नहीं देखते तो कोई हमको क्योँ देखेगा। हमारी आँखों के अंधियारे ने कभी सूरज देखा न चाँद। न पेड़ पौधे.  हम ने तो एक दूसरे को भी नहीं देखा।  कैसे लगते है हम हमें ही नहीं पता। फिर कोई और हमें क्यों देखेगा ? न भैया मै अभी रात में आपको बाहर नहीं  जाने दूंगी।  कोई सांप , बिच्छू , कीड़े मकोड़े ने काट लिया तो.... अरे काटेगा तो काटेगा , मै आज बारिश में जरूर नहाऊंगा। साठ साल के होने जा रहे है आप।  इस उम्र  में कोई जिद करता है  वो भी रात  के दो बजे !  न सुनयना आज तो मै  नहाऊंगा ही और तुमको भी  बारिश में  ले जाऊंगा।  मुझे मालूम है तुम भी मन ही मन भीगना  चाहती हो और मुझे मना  कर रही हो।   साठ साल का चैनू  अपनी चौवन साल  की बहन सुनयना का हाँथ पकड़ कर घर के बाहर सड़

उनको अब तुम जाने न दो

बरसो मेघा , जम  के बरसो वो आये हैं ! उन को अब तुम जाने न दो , मुझको  जितनी रहीं दिक्कतें ; उनको पूरा सुन लेने दो। उनने जितने पतझड़ झेले उनको पूरा कह लेने दो , वर्षा बनकर समय दिला दो  बातें बनकर गले मिला दो , साथी बनकर रहे है तन्हा , इस जीवन में हमें मिला दो बरसो मेघा जम के बरसो उनको अब तुम जाने न दो.

एडमिशन फीस और माँ की हंसुली

क्या हुआ आ पापा इतना क्योँ गुस्सा हो रहे हैं ? नहीं नहीं बेटा गुस्सा नहीं हो रहा हूँ . बस मन इन स्कूल वालों की हरकतों पर तड़प तड़प के रह जाता हूँ . ये लोग हमारी मजबूरी का नाजायज फ़ायदा उठाते है . सातवीं कक्षा में पढने वाल रोहन समझ नहीं पा रहा पापा क्योँ इतना परेशान हैं. स्कूल तो अच्छा है . टीचर भी अच्छी हैं . हाँ क्लास में बच्चे ज्यादा है . टीचर सब पर ध्यान नहीं दे पाती.मुझसे तो तीन – चार दिन से टीचर ने कोई बात नही की. कोई सवाल भी नहीं पूछा. शायद मुझे देख नहीं पाई होगी . मै  पीछे छुप जाता हूँ न . क्या यह बात पापा को बताऊँ ? नहीं नहीं, पापा और गुस्सा होने लगेंगे. अभी मुझे चुपचाप ही रहना चाहिए. घर जाकर पापा मम्मी को सारी बात बताएँगे ही तब मै चुपके से सुन लूँगा. घर जा कर रोहन के पापा चिल्लाने लगे. “ क्या करूँ अब , रोहन के स्कूल में प्रिंसिपल बोल रही थी की एडमिशन फीस और मासिक फीस दोनों बढ़ाई जा रही है . बीस हजार रुपये एडमिशन फीस जमा करनी होगी और हर महीने दो हजार मासिक फीस  देनी होगी. समझ में नहीं आ आ रहा क्या करूं” . रोहन की  मम्मी बोली आप पहले शांत हो जाइये फिर आराम से बात करते हैं. सब लो

विश्वास

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कंहा हो तुम

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टुकड़ा टुकड़ा भूख

वो कुल्हाड़ी से वार करता जा रहा था.  उसे न  कुछ सुनाई पड़ रहा था , न दिखाई पड़  रहा था. जब कुल्हाड़ी उसके हाँथ से दूर जा गिरी वह धम से वंही  जमीन  पर  गिर  पड़ा।  तब तक घर के आस पास भीड़ लग गई थी. लोग घर के अंदर घुसे तो देखा वह अचेत पड़ा है। उसकी पत्नी की  छिन्न - भिन्न लाश पड़ी  है।  घर में चारों तरफ़ खून ही खून.   भीड़ में  लोग  क्या हुआ , क्या हुआ  कर रहे थे।  कोई बोला  अरे अंतू  ने अपनी पत्नी को कुल्हाड़ी से काट डाला। तब तक पुलिस आ गयी।  भीड़ तितर - हो गई थी. . पुलिस ने घर अपने कब्जे में कर लिया था।  लोग अब भी दूर दूर से देख रहे थे। पुलिस ने शव को पंचनामा के लिए भेज दिया था और अंतू को थाने ले गयी।  अंतू चुप था जैसे वो कभी बोला ही न हो। वह रात भर वैसे ही बैठा रहा ।  बिना  हिले -डुले। सुबह पुलिस को जो उसने बताया वह क्या यकीन करने लायक था..   वो भूख से बेहाल था. घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था . पत्नी घर में नहीं थी. जब तक पत्नी घर लौटती उसने पूरा घर छान लिया. कुछ भी नहीं मिला जो उसकी भूख को शांत कर सकता. आगे कल पढ़ें अब आगे पिछले एक हफ्ते से उसे काम नहीं मिल रहा था. शहर में क

'Best'

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वो न आये

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उपभोक्तावाद का सच

देश दुनिया में पांव पसारता हुआ उपभोक्तावाद , अपनी आँखों से देखती हूँ क्या करूं ? रोक नहीं सकती कह नहीं सकती कि दूर रहो इससे , यह अजगर की तरह जकड़ लेगा हमें , तब तक नहीं छोड़ेगा; जब तक निकल न जायेंगे प्राण , 'अयं निजः परोवेति' की बात तो दूर हो गयी ... अब सिर्फ दूसरों की चीजों से मज़े करो , ठूंस लो अपनी जेबें, बचा खुचा तहस नहस कर दो , कभी न निकालो इकन्नी अपनी जेब से , दूसरों का सामान सरकारी माल की तरह उड़ाओ, पता चल जाए कि इसके पास है कुछ , तो परिक्रमा करते रहो आसपास. दूसरों की बुराइयों के कसीदे काढते रहो , अपनों के मन में भरते रहो ज़हर ; की फूट न जाए उनके मन में किसी और के लिए प्यार का अंकुर ... यही है उपभोक्तावाद का सच .

सच के खिलाफ़

नहीं चाहती कि लिखू एक और सच  वह भी हो  जाए आग के हवाले , कलम पकड़ने के एवज में उधेड़ जी चमड़ी, तसलीमा की तरह  अपने ही देश में कर दिया जाय नज़रबंद, धर्म के ठेकेदार करने लगें फ़तवा, दस आदमी उतारने लगें इज्ज़त सरे बाज़ार।  जानती हूँ इस आज़ाद देश में ; आधी आबादी आज भी है पराधीन, सृष्टी के सपने को धरती पर उतारने वाले को; गर्भ में ही सुला दिया जाता है मौत की नींद , वे चाहते हैं उनका सच छुपा रहे सात पर्दों में , हुकूमत उनकी चलती रहे सालों साल, दुसरे की कुर्बानी पर उड़ती रहे मौज  और वे !मुसोलिनी , नेपोलियन ,औरंगज़ेब बन  करते रहें तानाशाही उस कौम पर  जो जानती है उनकी नंगी असलियत। 

ईमानदार दोस्त

दो दोस्त एक दूसरे  से बात करते हुए. पहला दोस्त : यार मेरे रुपये कब लौटाएगा ? दूसरा दोस्त : कौन से रुपये , मुझे याद नहीं आ रहा मैंने तुमसे कब रुपये लिए थे। पहला दोस्त : हाँ मै जानता था तुम भूल जाओगे । दूसरा दोस्त : नहीं यार ऐसी बात नहीं है , बता न कितने रुपये थे , मै  तुम्हारे रुपये जल्दी ही लौटा दूंगा।  पहला दोस्त : तुम्हे याद होगा , हम दोनो तुम्हारी साईकिल से कॉलेज जाते थे। एक बार रास्ते में साईकिल पंचर हो गयी थी , तब तुमने  साईकिल बनवाने के लिए मुझसे दो रुपये लिए थे. दूसरा दोस्त : हाँ ,  याद  या ये लो अपने दो रुपये।  वह रूपये निकाल कर देता है। पहला दोस्त : देख यार बुरा मत मानना कि  मैंने  तुमसे  दो रुपये मांग लिए. वो बात ऐसी है कि आज से पहले मैंने तुम्हे जब भी याद किया , मुझे सबसे पहले अपने दो रुपये याद आये। अब देखता हूँ तुम मुझे  याद आते हो या नहीं। . Anyway happy friendship forever.

मोचीराम की दुकान पर GST

एक मोचीराम दूसरे मोचीराम से बोलता है , क्यों सोहना कल से GST देश भर मैं लागू हो गया है , अब हम लोगों को कितना टैक्स देना पड़ेगा.? हाँ बुधिया ,अब सरकार जाने।  सब कहते है कि अगर ग्राहक को AC की हवा लगेगी तो ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा.  घसीटे , तुम्हारी दूकान के सामने जो लोग खड़े होते हैं उनको  AC की हवा लगती है , ऊ सामने वाली बड़ी दूकान से थोड़ी थोड़ी हवा आती है , तुमको ज्यादा पैसा सरकार को देना पड़ेगा। अच्छा !हम तो धुप में बैठते हैं।  बुधिया , तुमको तो पीछे वाली दुकान से हवा लगती है तुमको और ज्यादा टैक्स देना होगा।   न जाने  क्या गड़बड़झाला है।  कितना टैक्स लगेगा , किसको देना होगा , कोई बताने भी नहीं आ रहा।  चलो पुलिस वाले से पूछते है , नहीं तो इस महीने वो दोगुना पैसा मागेगा। दोनों पुलिस के पास जाते है , कांस्टेबल : चल निकाल दोनों सौ सौ रुपए , अगले महीने से हफ्ता दूना जमा कर देना , हम देख लेंगे सरकार को कितना देना है।  अगले दिन से दोनों की दुकान बंद।  दोनों के घर में फ़ाक़ामस्ती।  सरकार की रिपोर्ट - देश भर में सफलता पूर्वक GST लागू जो गया। 

दम्भ (Ego)

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वो पहली बारिश

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खुशबुओं का ख़ुमार

होठों पे राखी आग और हाथों में हिमालय ', कितना तेज़  है उनकी आँखों में खुशबुओं का ख़ुमार। पास आने से डर है फ़ना हो जाने का , काश ज़िंदा रहे रूहों का ठिकाना तब तक ; जब तक बर्फ पिघलने का मौसम न आये , फूलों की पंखुड़ियां मुरझाने न लगें , सर्द रातों में ओस की बारिश न थमे , उनके जाने की घड़ी बीत न जाये।

मीत हमारे

कस्ती , नदिया ,पंछी ,पर्वत घर लौटे थे मीत हमारे , सुख की सब्जी , दाल हंसी थी रोटी सी मुस्काने उनकी। दाना दाना रंग बिखेरे , हंसी ठिठोली थाली थाली , मुँह में जीवन , पेट में जीवन , रूह हमारी सुख का सावन। उनका आना सुखी ज़िंदगी , उनका जाना मौत वीरानी।

हाँथ हिलाते हैं बच्चे

बच्चे नहीं चाहते ; कि ट्रेन के किसी डिब्बे में लग जाये आग धू धू कर जलने लगे जिन्दा शरीर, बच्चे नहीं चाहते ; कि टूट जाये कोई जर्जर पुल और रेलगाड़ी के डिब्बे लेलें जल समाधि, बच्चे नहीं चाहते ; कि न पंहुच पाओ तुम अपने घर  लेकर सबके लिए उनके हिस्से की खुशियाँ , बच्चे नहीं चाहते कि हो कंही पर कुछ अनिष्ट: इसीलिये रेलगाड़ी के गुजरने पर  बच्चे हिलाते हैं हाँथ  खिलखिलाते हैं और देते हैं शुभकामना  तुम्हारी सही -सलामत घर वापसी के लिए .

फ्रेम ज़िन्दगी का

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@Smile Please

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@soul

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हिंसक समय में

जब कविता में शब्दों की जगह भर जाये आग और बारूद   , तो मत समझना दोस्त! समय की शाख पर बैठी कोयल गायेगी मीठे गीत   , माँ की लोरी से सो जायेगा बच्चा निर्बाध नीद , और चाय के प्याले में नहीं होगी कोई विषैली खबर   , साथियों! समय का श्वेत पर्दा   जब हो चूका हो लहूलुहान ; तो कौन कोयल गाने की हिम्मत करेगी   , किस कलम से निकालेंगे खुशी के शब्द   , कौन तितली मस्ती में फैलाएगी अपने रंगीन पंख   , कैसे अनजान दोस्त बांधेंगे दोस्ती की अटूट गांठ   , है कोई समय का संरक्षक   , जो दे सके लोगों को   एक मुट्ठी हिम्मत   , एक प्याला शांति ,