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आत्मबोध

  मेरे भीतर एक जादूगर रहता है न मुझसे जुदा , न मुझसा मुझे दूर से देखता हुआ दिखाता है मुझे आत्ममोह, या ख़ुदा! कितना अलग है मुझसे मेरा मै आत्मध्वजा के भार से झुका हुआ मै झुक ही नहीं पाता माफ़ी के दो लफ्ज़ो में, शुक्रिया के शब्दों का झूठ मेरी ही आत्मा पर जमा रहा कालिख है... न न .. अब और नहीं और नहीं लादूँगा खुद पर 'कुछ होने' का बोझ नहीं तो ..! मेरा जादूगर बदल देगा मुझे उस सुनहरी छड़ी में जिसकी छुअन से सच झूठ में बदल जाता है... #अपर्णा

चूहे की बारात (बाल कविता)

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 चूहा अपनी ही बारात से भाग गया !! आख़िर क्यों ?? सुनें / देखें और अपनी प्रतिक्रिया दें

उंगलियों का तिलिस्म

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 उतरन की तरह उतार कर रख दिया प्रेम, कमरे के भीतर उतार कर रख दी आत्मा, वह अभी भी सांकल पर रखी उँगलियों का तिलिस्म खोजती है, वे जो खोल देती हैं दरवाजे से दुनिया... सोलह श्रृंगारों का साथ, सुहागन की पहचान, वंश की बेल को जिंदा रखने का एहसास फिर भी उंगलियों का जादू जिस्म की सांकल नहीं खोल पाता, रूह और प्रेम के बिना भी बीत जाती है ज़िन्दगी, कट जाती है उमर बढ़ता है वंश भी  बस एक इंसान मात्र शरीर रह जाता है... Picture credit -Siddhant  #अपर्णा

बच्चे की भगवान से बात

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ईश्वर के वैभव को देखकर एक बच्चा भगवान से कुछ इस प्रकार बातें करता है..

प्रेम और शांति के बीच हम

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 किसे नहीं पसंद है रातों का मख़मली होना, सुबह के माथे पर उनींदी ओस की बूंदें, झुमके के साथ हिलते बालों का मचलना, वे इलाइची की गंध में पगी चाय की खुशबू खोजते हैं, जैसे तलाशते हैं अफ़ग़ान बच्चे शांति का एक कोना, जहां बंदूकों और बमों की आवाजें न हों, जब तालिबानी लड़ाकों की मासूमियत मर जाती है, तभी धरती से सूख जाती है शबनम! रात के आंचल पर बिखर जाता है मासूम तारों का लहू, क्यों न चाय के गिलास में पिला दी जाय शांति की दवा, हिंसक मंसूबों पर उड़ेल दिए जांय मासूम बच्चों के कहकहे, आओ! दुनिया के माथे पर एक बोसा दिया जाय और सोख लिया जाय सारा ज़हर.. फ़िर झुमके  के साथ झूमेंगे बाल भी, हम भी... झूमती हवाएँ #अपर्णा वाजपेयी

हँसती हई औरत

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उसे हँसना पसंद है इसलिए उसने चुना हँसना! तब भी, जब फेंक कर मारता है कोई जूता, या बंद कर देता है दरवाजों के पार, वह हँसती है, अपनी उधड़ी हुई खाल देखकर, नाभि के नीचे बहते लहू की धार देखकर भी, वह भूख में भी हँसती है, बलात्कार ये बाद भी उसे हंसी आती है, दर्द के भयानक आवेग को दबाकर भी वह हँसती है.. वह हँसती है क्योंकि सिर्फ हंसना ही हथियार है हंसना एक मात्र उपचार, हंसी एक मात्र दोस्त! और हँसता नहीं कोई उसे देखकर अब... #अपर्णा वाजपेयी

आदिवासी गलियों में घूमते हुए

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"अंतरराष्ट्रीय जनजातीय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं" आज प्रस्तुत है एक कविता जिसमें झारखंड के आदिवासी गलियों में घूमते हुए, उनसे मिलते हुए जो महसूस हुआ उसे स्वर देने की कोशिश की है... यह वीडियो देखें, और अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत कराएं.. सादर

हाँथी का घाव

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 एक कहानी बच्चों और जानवरों की दोस्ती पर  खुद सुनें और अपने बच्चों को सुनाएं.. दोस्ती बेज़ुबान जानवरों से कितनी जरूरी है!! क्या हम ख़ुद की तरह उनका दर्द भी महसूस कर सकते हैं? अगर बचाये रखनी है मानवता इस धरती पर तो हमें अपने बच्चों में अभी से संवेदना के बीज रोपने होंगे..

जल है तो कल है

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 सुनें एक कहानी और खोजें पानी बचाने के नए नए तरीके

रंगों का उत्सव

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 फागुन में रंगों की आई बाहर है, गले मिलो होली ये सबका त्योहार है।2 हिन्दू और मुस्लिम सिक्ख ईसाई, मिलजुल के सबने है होली मनाई सबके गालों पर लगा अब गुलाल है गले मिलो होली..... फाग के रंग में रंगी है अवधिया, कान्हा के गोकुल में नाचे हैं सखियां, बरसाने  लाठी से होता दुलार है गले मिलो होली .... काशी में शिव की बारात है आई भांग के रंग में रंगे हैं बाराती, गौरा और शिव की निराली ही बात है गले मिलो होली...... रंगों का उत्सव खुशी का है संगम शालीन रखना, मचाना न ऊधम, हुड़दंगी होली से बचना ही शान है गले मिलो होली....

शहीदों को याद करते हुए

फाँसी का फंदा चूम लिया जब तीनो अमर शहीदों ने वो बीज धरा पर डाल गए कुर्बानी की परिपाटी के, था एक भगत, एक राजगुरू सुखदेव एक था तीनों में, उस कोर्टरूम में बस उसदिन बम धमकाने को फेंका था, उद्देश्य एक था आज़ादी अंग्रेजों को भगाना था, अपने अम्बर की छाती पर आज़ाद हवा लहराना था, सूखी रोटी सादा पानी, अपनी धरती का सुख धानी, आज़ाद देश का मूल्य बहुत कुछ वीरों की हो कुर्बानी, भारत माता की सेवा में  घर बार जिन्होंने छोड़ा था कर न्योछावर सुख जीवन का अपनों को सिसकता छोड़ा था, न कोई लालच था उनको, उत्कृष्ट इरादा था उनका बस देश प्रेम ,आज़ाद फिज़ां सब वीरों का बस एक सपना अंतिम इच्छा थी तीनों की, बस एकदूजे के गले मिले फ़िर चूमें वे इस फंदे को माँ के मस्तक को ज्यों चूमें, था सिसक रहा पूरा भारत और देशप्रेम की अलख जगी कुर्बान हुए उन वीरों से अगणित वीरों की फौज उठी, फ़िर फहर गया अपना झंडा, अंग्रेजों से आज़ाद हुए, उन अमर शहीदों ने हमको आज़ादी की सौगात दिए, इस आज़ादी को जीना है इस धरती पर मर मिटना है, हो जन्मभूमि पर न्योछावर अपनी आहुति अब देना है।। ©️अपर्णा बाजपेयी

शहीदों की याद में

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 इस शहीद दिवस पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को इस छोटी सी कविता के माध्यम से हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं

प्रेम में

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 उन्होंने मछलियों से प्रेम किया खींच लाये उन्हें पानी से बाहर, भले ही इस बीच वे ज़िंदा से मृत हो चुकी थीं; पानी जो उनका लिबास था घर था और था जिंदगी की पहली जरूरत, प्रेम में पानी को पत्थर बनते देखा, पानी जो गवाह था मरती हुई मछली की तड़प का, मछलियां मर रही थीं पानी मर रहा था, ज़िंदा था तो बस प्रेम! मनुष्य का प्रेम मृत्यु का सबसे बड़ा सहोदर है। Image credit undplash.com  ©️Aparna Bajpai

एक अज़नबी

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  तुमने मेरी आँखों मे देर तक झाँका, चुपके से देखते, और छिप जाते शर्म की ओट, मां की गोद में दुबके हुए तुम! मेरे चेहरे की लकीरें पढ़ने में व्यस्त थे, और मैं; तुम्हारी आंखों के उस भाव को समझने में, तुमने मेरे बैग को छुआ, मानो जांचना हो मेरा गुस्सा, मेरी ओढ़नी पर अपने होंठों की छाप लगाई, शब्द हमारे बीच अज़नबी रहे, और भाषा अनावश्यक फ़िर मैं उठी, विदा में तुम्हारी ओर देखा, अचानक तुमने थाम ली मेरी उंगली.... तुम्हारी आँखों में भर आया जल,  और मैं नेह के सागर में डूब गई... अब तुम मेरी डायरी के पन्ने पर बैठे हो, जैसे बैठ गया हो समय थोड़ी देर सुस्ताने को। अपर्णा बाजपेयी

जब कभी होना अकेले

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 हम मनाते हैं 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' क्योंकि महिलाओं को खुद से प्यार था। श्रम के मूल्य में बराबरी, सत्ता के चुनाव का अधिकार और समाज में स्वयं को समान स्तर पर लाने की चाह ही थी जिसने हमें लंबे संघर्ष के बाद अपना दिन दिया। यह दिन हम सब के लिए अपना होना चाहिए। सिर्फ महिलाएं ही नहीं पुरुषों के लिए भी। आज बस इतना कहना है कि हमें ख़ुद से प्रेम करना होगा तभी हम स्वयं को बराबरी के स्तर पर देख पाएंगे। जब कभी अकेले होना तो होना आने साथ, दुलारना खुद को थोड़ा सा, जैसे चूम लेते हो अपने बच्चे का मस्तक; एक चुम्बन अपनी हथेलियों पर रखना अपनी आंखों में झांकना और देखना मानो नीली झील तुम्हारे मन में ठहर गई है, एक लंबी सांस लेना और भर लेना हवा को फेफड़ों में, पांवो के तलवों को छूकर कहना धन्यवाद दोस्त! तुम्ही ने थाम रखा है इस कठिन समय में, अपने अंगों को गौर से देखना और महसूसना; कितनाअमीर बना कर भेजा है ख़ुदा ने तुम्हें, दूसरों के ख़याल में डूबी हुई औरतों! थोड़ी देर के लिए खुद के साथ होना, और दुनिया भर के बोझ से लदे पुरुषों! तुम्हें भी हक़ है सराहे जाने का: खुद की तारीफ़ में कुछ लतीफ़े खोजना, अपने सौं

उसी मोड़ पर

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 कभी उस मोड़ तक आना तो ठहरना कुछ देर, परछाइयां कुछ अब भी तेरी राह तक रही होंगीं, जमीं पर डालना बस एक नज़र तुम यूं ही शर्म में डूबी हुई आंखों का ख़याल आएगा, हथेलियां अपनी भीचोगे तो उफ़्फ़ निकलेगी किसी का हाँथ कट कर दूर गिरा हो जैसे,  हवा उस मोड़ पर अब भी सुर्ख़ होगी कुछ लालियां घुल गई थीं उनमे जो बरसों पहले, पुराने दर्द बड़े कीमती होते हैं वहीं जहां गिरने से कभी ज़ख्म लगा होता है.. अपर्णा बाजपेयी

बच्चे की बात (कविता)

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आज मैंने आसमान में टंगी हुई इक रोटी देखी चम-चम, चम-चम चमक रही थी, रोटी पाना, क्या आसमान पाने जैसा है? खाली मूली चांद देखकर क्या होता है पेट नही भरता अपना है.... नींद हिलोरें देकर भी जाने कहाँ सरक गई है, जब जब जलती बत्ती कोई दूर रोड पर, मइया की धोती में थोड़ा और पसरते, हो सकता बूंद एक दो बची हुई हों... गोल-गोल रोटी के ऊपर रखी मलाई, मिल जाएगी जिस दिन... समझूंगा तुम सच में हो! मंदिर भीतर मंद-मंद जो मुस्काते हो हाँथ में पकड़े हुए हो जो बंशी तुम! इधर उछालो तो जानूं कि सच्चे हो तुम! Picture credit google अपर्णा बाजपेयी

अविवाहिता

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  गेसुओं में खिले गुलाब तरोताज़ा थे  उन हांथों के स्पर्श से भोर में जो रख देते थे माथे पर एक मीठा चुम्बन, उसने नहीं देखा था सुबह का सूरज कभी,  माँ के चरणों से छनती स्नेह-धूप हजार सूरजों पर भारी थी... चाय की कप के लिए मधुर पुकार ने उसे इश्क़ के समंदर से खींच लिया था... उम्र के ज्वर से कांपते शरीर अम्बर में टंके चाँद से ज्यादा कीमती थे... कुबूल है बोलने की जगह कुबूला था उसने जन्मदाता के लिए नरम छांव बनना उम्र की जमा पूंजी चन्द स्मृतियाँ थी; जो मृत्यु की राह तक सहचर हुईं... picture credit  @siddhant अपर्णा बाजपेयी

घमंडी पतंग (बाल कहानी)

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 हमारा व्यवहार कैसा हो, यह जानने के लिए सुने और बच्चों को सुनाएं बाल कहानी- "घमंडी पतंग कहानी पसंद आये तो like और share जरूर करें। अपर्णा बाजपेयी

'चल बिटिया स्कूल चलें हम '

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आज प्रस्तुत है बच्चों के लिए लिखी गई विश्वमोहन कुमार की कविता 'चल बिटिया स्कूल चलें हम ' हमारे You Tube chanal Indradhanushi duniya पर.... आप भी हमारे साथ अपनी कहानियां, कविताएं शेयर कर सकते हैं इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचायें... अपर्णा बाजपेयी

असलियत का सामना( किस्सा बालों का)

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फैशन करना किसे अच्छा नहीं लगता! खूबसूरत बाल, चमकदार आंखें,  उजली रंगत, खशबू उड़ाती अदा और न जाने क्या क्या... तो दोस्तों मारे तो हम सब हैं फैशन के... कभी कभी हम खुद को थोड़ा अलग दिखाना चाहते हैं... और इसके लिए भारी मशक्कत भी करते है. लेकिन क्या हो अगर भरे बाज़ार हमारा असली रूप सामने आ जाये। तो किस्सा कुछ यूं है कि, अरशद मियाँ क्या गबरू जवान हट्टे-कट्टे आदमी थे एक बार में चार आदमियों को धूल चटा देने वाले... मोहल्ले में उनके जैसा दिखने वाला दूसरा आदमी न था। घर में बूढ़े बाप के अलावा और कोई न था। बेचारे जल्द से जल्द शादी करना चाहते थे। खाला और फूफियों ने कई रिश्ते भी दिखाए थे पर बात बन न पाई थी। समस्या थी उनके बाल! जो दिनों दिन संख्या में कम होते जा रहे थे। अब टकला होना किसे अच्छा लगता है... बेचारे हर महीने हज़ारों रुपये अपने बालों को बचाने में खर्च करते। गूगल बाबा की शरण में जा-जा कर नए नए नुस्ख़े तलाशते और उन्हें अपने  बालों पर आजमाते, पर वही ढाक के तीन पात!! बालों का गिरना बदस्तूर जारी था। एक दिन ख़ाला ने कहा कि एक खूबसूरत लड़की मिल गई है... जल्द से जल्द आकर देख लो नहीं तो वह भी हाँथ से निकल ज

धागे का दु:ख

मजदूर के तन पर चढ़ा उतरन खुशी में भूल जाता है अम्मा की उंगलियों का स्वाद, करघा खड़ा है गांव के बाहर कपास सिर धुन रही है मिल की तिजोरी में, का से कहूं दुखवा मैं धागे का, मिलान में रेड कार्पेट पर चलती हसीनाएं और उनका शरीर न जाने आजकल गंध क्यों मारते हैं, बाबू के माथे का पसीना जब - जब गिरा है करघे की डोरों पर, यह देश मेहनत की खुशबू में डूब गया है। ©️अपर्णा बाजपेई

यह गणतंत्र दिवस हमारे कर्तव्यों के नाम

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गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आइए आज हम प्रण लेते हैं कि यह दिन हम अपने जीवन में मात्र एक छुट्टी के दिन की तरह न मनाकर याद करेंगे आज़ादी के उन लड़ाकों की कहानी जिन्होंने अपने आप को हंसते हंसते देश पर न्योछावर कर दिया था। आज सबसे जरूरी है कि हम अपने बच्चों को इस आज़ादी की कीमत समझाएं, उन्हें बताएं इस प्रजातंत्र ने उन्हें क्या शक्ति दी है, हमारे संविधान ने उन्हें क्या अधिकार दिए हैं और उनके क्या कर्तव्य हैं। आज जब पर्यावरण बिगड़ रहा है, जंगल सिकुड़ रहे है, इंसान मात्र एक संख्या भर है तब जरूरत है कि हम बच्चों को सही राह दिखाएं, उनके लिए प्रेरणा बनें। इस गणतंत्र दिवस को प्रकृति और मानवता के नाम समर्पित करें।

झरबेरिया के बेर

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 आज झरबेरिया का किस्सा सुनो दोस्तों! तो हुआ यूं कि एक दिन राम खेलावन चच्चा बैठे रहे अपने दुआर पर। तब तक पियरिया अपनी झोरी में झड़बेरी के बेर लेकर खाते हुए निकली और राम खेलावन के दरवाज़े के बाहर गुठली थूक दी। राम खेलावन सब देख रहे थे। वहीं से चिल्लाए... ऐ पियारी एने आओ... उठाओ गुठली, दरवाज़े दरवाजे थूकती चलती है। पीयारी सहम गई... ई राम खेलावन चच्चा कहां से देख लिए.. अब हो गया सत्यानाश.. पियारी लौट के अाई का ,हुआ चच्चा... आवाज़ दिए थे का... चच्चा का पारा सातवें आसमान पर.. देखो इसको.. दरवाजे पर गुठली थूक के कहती है आवाज़ दिए थे का.. ई गुठली उठाओ और भागो यहां से.. पियारी लजा गई। चच्चा आज नहीं छोड़ेंगे। दुवार पर गिरे एक- एक पत्ता को अपनी जेब में रखने वाले राम खेलावन आज दरवाजे पर किसी का थूक कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। बात सही है चच्चा की। तब तक मोहल्ला के और लोग इकट्ठा हो गए।  अपनी ही थूकी हुई गुठली उठाने में पियारी को बहुत शर्म अा रही थी वो भी सबके सामने। झट से चच्चा के सामने झोली फैलाते हुए बोली, चच्चा तनी खाके देखो ई बेर। हिया खटिया पर रख रहे हैं, अभी गुठली उठा के फेंक देंगे। तनी मिठास दे

नया कुछ रचना है

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पानी में रहना है मगर से लड़ना है किस्सों की दुनिया में नया कुछ रचना है। होशियार से होशियारी की लोहार से लोहे की पेड़ों से लकड़ी की शिकायत नहीं करते हैं। आंखों से पानी को भरे घर से नानी को बैलों से सानी को अलग नहीं करते हैं। बातों में मिठास को दावत में लिबास को बीमारी में उपवास को  दरकिनार नहीं करते हैं।। ©️ अपर्णा बाजपेई

वक्त से उम्मीद कुछ ज्यादा रही थी

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 वक्त से उम्मीद कुछ ज्यादा रही थी, आज एक सरिता कहीं उल्टा बही थी रुक गए थे हांथ में पतवार लेकर मौज से कस्ती ने कुछ बातें कही थीं... था अंधेरा हांथ में दीपक रखा था, शाम ने जुगनू से एक मुक्त्तक कहा था, धूप ने सींची थी वे कंपित गुफ़ाएं, तम ने जिनमें मौन का संबल रखा था... दोस्ती ने हांथ में खंजर रखा था, पीठ पीछे शब्द ने गड्ढा बुना था हांथ अपना कट चुका था बरसों पहले देर से कितना कोई नश्तर चुभा था। राह रोके खड़ी थीं कुछ वर्जनाएं देहरी से दीप कुछ पीछे हटा था लौटना था जिस तरफ हरदम अकेले हांथ वहीं आकर सहसा कटा था लौट आना फिर कभी कोई न बोला ये जगह बस आपकी होकर रहेगी स्वप्न सारे जीते होंगे जो कहानी आज जाग्रत देह जिएगी दीवाली।। ©️Aparna Bajpai