अविवाहिता
गेसुओं में खिले गुलाब तरोताज़ा थे
उन हांथों के स्पर्श से
भोर में जो रख देते थे माथे पर एक मीठा चुम्बन,
उसने नहीं देखा था सुबह का सूरज कभी,
माँ के चरणों से छनती स्नेह-धूप
हजार सूरजों पर भारी थी...
चाय की कप के लिए मधुर पुकार ने
उसे इश्क़ के समंदर से खींच लिया था...
उम्र के ज्वर से कांपते शरीर
अम्बर में टंके चाँद से ज्यादा कीमती थे...
कुबूल है बोलने की जगह
कुबूला था उसने जन्मदाता के लिए नरम छांव बनना
उम्र की जमा पूंजी चन्द स्मृतियाँ थी;
जो मृत्यु की राह तक सहचर हुईं...
अपर्णा बाजपेयी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी
हटाएंसादर आभार
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी
हटाएंसादर
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०२-२०२१) को 'असर अब गहरा होगा' (चर्चा अंक-३९८८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
अनीता जी, रचना को लिंक करने के लिए आभार
हटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार अनुराधा जी
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2050...क्योंकि वह अपनी प्रजा को खा जाता है... ) पर गुरुवार 25 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी
हटाएंसादर
गहन भाव! एक अविवाहिता का अवसान को अग्रसर समय और जीवन सार।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
शुक्रिया दी
हटाएंबहुत आभार
सादर
वाह🌻👌
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी ! ऐसा त्याग करने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जितेंद्र जी
हटाएंसादर
गहन भाव समेटे हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार कामिनी जी
हटाएंप्रिय अपर्णा अलग ही रंग ही आपकी लेखनी का।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
आपका हृदयतल से आभार, सादर
हटाएंहृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अमृता जी
हटाएंसादर
सुंदर!
जवाब देंहटाएंकुबूल है बोलने की जगह
जवाब देंहटाएंकुबूला था उसने जन्मदाता के लिए नरम छांव बनना
प्रिय अपर्णा , काफी मजबूरियां थी सो तुम्हारी रचनाओं पर प्रतिक्रिया ना दे पाती थी | आज कंप्यूटर पर बठकर दे पाई जिनमें ये रचना मेरे मन के करीब थी | श्रवण कुमार के देश में बेटियों की सेवा और समर्पण को हमेशा अनदेखा किया गया | इतिहास गवाह है शाहजहाँ जैसे बादशाह की बेटी जहानारा ने उसकी सेवा मरते दम तक की थी , बेटों ने नहीं | कुबूल है की जगह माता पिटा के प्रेम की अनमोल थाती सहेजने वाली इस बेटी को भी जहानारा के साथ कोटि नमन | अजन्मे बेटों के लिए , जीती जागती बेटियों का मान कम करने वाले माँ बाप के लिए ऐसी बेटियों की गाथाएं एक मिसाल हैं |बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं थोड़े शब्दों में एक मर्म कथा को सहेजते शब्द चित्र के लिए | हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार |
आदरणीय रेनू दी,
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया अनमोल तोहफ़ा हैं मेरे लिए, इनसे यूं ही मेरी झोली भरती रहे और मैं इन्हें सहेजती रहूँ..
सादर