माउंटेन मैन' दशरथ मांझी (कविता)
प्रेम में पहाड़ खोदते हुए
कितनी ही नदियां बही होंगी स्वेद की,
धरती माँ के आंचल पर,
टपका ही होगा लहू उंगलियों से,
या फट गई होंगी बिवाइयां;
प्रियतमा के रुनझुन पांवों का स्वप्न देखते हुए,
प्रेम के नाम पर विकास की इबारत लिखते हुए,
तुमने कहा था! प्रेम राह बनाता है.., मिटाता नहीं
ओ पहाड़ पुरुष, शिलाओं सा धैर्य धारण कर,
तुमने ही जिया प्रेम का सच्चा अर्थ,
बेहाल पथिकों के पांवों पर;
अपने पसीने का मरहम लगाने
तुम्हारे हाथों ने थामी थी कुदाल,
गर्भ धारित स्त्रियों की व्यथा को महसूस
तुमने जो राह बनाई,
आज बच्चे उसी राह पर फुदकते हुए कहते हैं,
ओ मांझी काका! तुम होते तो हम तुम्हारा मस्तक चूमते
और कहते!
हम भी बनेंगे 'माउंटेन मैन'
जी हाँ, प्रेम का सच्चा अर्थ उन्होंने ही समझा तथा प्रेम को सच्चे अर्थों में उन्होंने ही जिया। हमने शीरीं-फ़रहाद की प्रेमकथा में सुना है कि फ़रहाद ने शीरीं के प्रेम के निमित्त दुग्ध की नहर बना डाली थी एवं तदोपरांत एक नवीन शर्त के अंतर्गत पर्वत के आरपार समतल पथ के निर्माण में रत हो गया था। उसकी प्रेमकथा दुखांत बताई जाती है। दशरथ माँझी की प्रेमकथा सम्भवतः वास्तविक अर्थों में दुखान्तिका के उपरांत ही आरम्भ हुई। वे शीरीं के प्रेमी फ़रहाद की भांति काल्पनिक नहीं, अपनी जीवन-संगिनी फ़ाल्गुनी के सच्चे संगी दशरथ थे जो वास्तविक होकर भी अपने कर्म से किवदंती बन गए; जिन्होंने समस्त संसार को बताया कि सच्चा प्रेम वस्तुतः होता क्या है एवं प्रत्यक्ष दर्शाया कि मनुष्य का दृढ़ संकल्प पाषाण को भी पिघला सकता है। अच्छी काव्य-रचना है आपकी। अभिनन्दन।
जवाब देंहटाएंआप सब की प्रतिक्रियाएं ही सतत लेखन का संबल हैं। सादर आभार आदरणीय जितेन्द्र जी
हटाएंबहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदशरथ मांझी की तरह एक और मांझी है हमारा
https://www.kavitarawat.com/2022/03/blog-post.html
बहुत आभार कविता जी
हटाएंसंवेदनशील सृजन
जवाब देंहटाएंजी, शुक्रिया
हटाएंसादर
दशरथ माँझी को चंद पंक्तियों में समेट लिया है । प्रेरक प्रस्तुति ।।
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