प्रेम का ताजमहल को दिसंबर 28, 2017 लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप इस अरगनी पर टंगी हैं तुम्हारी यादें…. हमारा प्रेम! न जाने कंहा निचुड़ गया, बसा है अब भी तुम्हारी साँसों का सोंधापन दीवारों पर तुम्हारे हांथों की छाप ज़िंदा है, हमारे प्रेम के अवशेष बिखरे हैं चंहु ओर...... कि.... ये कमरा हमारे प्रेम का ताजमहल है. टिप्पणियाँ NITU THAKUR30 दिसंबर 2017 को 11:29 am बजेबहुत सुंदर जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंरेणु30 दिसंबर 2017 को 5:58 pm बजेप्रिय अपर्णा ---- बदले वक्त के साथ बदलते रिश्तों की खोयी चमक को खूब शब्दांकित किया आपने |शुभकामना और बधाई मर्मस्पर्शी रचना के लिए | जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंRoli Abhilasha4 जनवरी 2018 को 2:17 pm बजेPrem shaswat hai.जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रिय अपर्णा ---- बदले वक्त के साथ बदलते रिश्तों की खोयी चमक को खूब शब्दांकित किया आपने |शुभकामना और बधाई मर्मस्पर्शी रचना के लिए |
जवाब देंहटाएंPrem shaswat hai.
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