टहनियों की पंहुच



उसके साथ आलिंगनबद्ध होने पर भी,
खींच ही लाती हैं मेरी टहनियां तुम्हे
और वो तकती है मेरी राह
कि कब पंहुचेगे मेरे हाथ उसके तने तक
जानती नहीं
परजीवी हूँ 
जीती हूं तुम्हारा ही रस पीकर
तुम्ही से है मेराअस्तित्व
और वो!
धरा है
तुम्हारा आधार
छोड़ नहीं सकते उसे
और मुझे भी
तुम उससे जीते हो
और मै तुमसे.

(image credit google)

    

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 04 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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