बाकी है अब भी!
जब- जब तुम्हे मिलने निकलती हूँ
बादलों के मेलें में गुम हो जाती हूँ
तुम, चाँद बन इठलाते हो,
खेलते हो छुपंछुपाई
हवा के झूलों पर उड़ती हूँ
दौड़ती हूँ तुम्हे छूने को
हज़ार कोशिशें करती हूँ
और तुम!
भागते हो मुझसे दूर
अमावस की चादर तले
छुपते हो
निहारते हो चोरी- चोरी
मेरे एहसास में गुम हो तुम भी
फिर; ये कैसा खेल?
बाकी है अब भी
प्रेम का प्रकटीकरण।।।।
(picture- google)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-12-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2810 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रेम के पलों की चुलबुली कल्पनाओं को शब्द में बाखूबी उतारा है ...
जवाब देंहटाएंBahut Sunder Rachna
जवाब देंहटाएंAap ki Har Rachna kamal ki Hoti Hai
Bahut Arthpurn likhti Hai Aap
Bahut achhi shabdawali mein anuthe prem ka varnan. Mantra mugdh ho gayi padhte-padhte.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 04 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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