इंद्रधनुष
इंद्रधनुष आसमान में ही नहीं उगता
यह उगता है एक स्त्री के जीवन में भी
हर शाम खून के लाल-लाल आंसू टपक पड़ते है
उसकी आँखों से;
जब खरीदकर अनचाहे ही
बिठा दी जाती कोठे पर बार बार
बिकने के लिए.
बिठा दी जाती कोठे पर बार बार
बिकने के लिए.
इंद्रधनुष का नीला रंग
जब-तब कौंध जाता है
जब प्रकट करती है वह अपनी इच्छा
और बदले में मिलते हैं क्रोध के उपहार,
कहते हैं बैगनी रंग औरतों की आज़ादी का प्रतीक है
देखिये कभी उसकी आँखों के नीचे उभरे हुए स्याह दाग
आज़ादी के मायने उसकी हर तड़प में सिमटे हुए मिलते हैं,
इन्द्रधनुष का हरा रंग
उसकी कोख में तोड़ता है दम,
सूख जाती है हरियाली,
पता चलते ही भ्रूण मादा है नर नहीं
और......... बहा दिया जाता है बेवजह रक्त के साथ
हर ताने के बाद बुझ जाता है उसके जीवन से
उल्लास का नारंगी रंग,
समाज मीच लेता हैं आँख और औरत;
व्योम के आसमानी रंग सी
विस्तार पा जाती है अपनी कुर्बानियों में.
बारिश के बाद
आसमान में उगता है इन्द्रधनुष
और.........
ज़िंदगी से मिट जाते हैं इन्द्रधनुष के रंग
कि...... औरत को औरत होने की सज़ा मिलती है.
(image credit google)
वाह बहुत ही बढ़िया। नारी की व्यथा को इंद्रधनुष के रंगों में पिरोना और वो भी इतनी खूबसूरती से। मान गए आपको।
जवाब देंहटाएंVery good gplsar.blogspot.com
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना जी
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत शब्दों से सजी रचना।
जवाब देंहटाएंरंग रंगीन होते हैं पर औरत के साथ मिलकर ये भी रंगहीन हो जाते हैं। बहुत अच्छे भावों के साथ स्त्री मन के दर्द को उकेरा है। वो दर्द जो रोज-रोज जीती है।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्ब योजना!बधाई!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ५ फरवरी २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
शुक्रिया श्वेता जी । मेरी रचना को मान देने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर
नारी की व्यथा को इंद्रधनुष के रंगों से बहुत
जवाब देंहटाएंखूबसूरती से पिरोया है।
के प्रतीकात्मक इन्द्रधनुष बहुत मर्मान्तक है प्रिय अपर्णा ----- कौन देख ना चाहता ये दारुण व्यथाओं वाला इन्द्र्धनुष ?????
जवाब देंहटाएंबारिश के बाद
आसमान में उगता है इन्द्रधनुष
और.........
ज़िंदगी से मिट जाते हैं इन्द्रधनुष के रंग
कि...... औरत को औरत होने की सज़ा मिलती है.
सस्नेह