उम्र का नृत्य
उम्र चेहरे पर दिखाती है करतब,
उठ -उठ जाता है झुर्रियों का घूंघट,
बेहिसाब सपनों की लाश अब तैरती
है आँखों की सतह पर,
कुछ झूठी उम्मीदें अब भी बैठी हैं,
आंखों के नीचे फूले हुए गुब्बारों पर,
याद आते हैं बचपन के दोस्त...
जो पंहुच पाए किसी ऊंचे ओहदे पर
कि... ऊपर आने के लिए बढ़ाया न हाँथ कभी,
कुछ दोस्त अब भी हाँथ थाम लेते हैं गाहे-बगाहे
जिनके हांथों में किस्मत की लकीरें न थी,
वक्त - जरूरत कुछ चांदी से चमकते बाल
खड़े हो जाते हैं हौंसला बन
जब चौंक जाता है करीब में सोया बच्चा नींद में ही,
पेट पर फिराता है हाँथ नन्हकू
और हलक में उड़ेल लेता है
एक लोटा पानी;
बटलोई में यूं ही घुमाती है चमचा पत्नी
और... पूछती है खाली आँखों से,
कुछ और लोगे क्या!!!!
उम्र की कहानी यूं चलती रहती है
वो भरते रहते हैं हुंकार
कि.... नींद न आ जाए वंहा
जंहा किस्मत खड़ी हो किसी मोड़ पर।
©Aparna Bajpai
(Image credit google)
वाह बहुत सुंदर लिखा 👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आराधना जी।
हटाएंसादर
जीवन का यथार्थ
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए सादर आभार आदरणीय अभिलाषा जी।
हटाएंजीवन की कड़वी सच्चाई है झुर्रियों की अनकही कहानियां.. बहुत सुंदर रचना👌
जवाब देंहटाएंकुछ झूठी उम्मीदें अब भी बैठी हैं,
आंखों के नीचे फूले हुए गुब्बारों पर,
लाज़वाब पंक्तियां।
आदरणीय श्वेता जी,आप की प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है। बहुत बहुत आभार ।सादर
हटाएंवाह!!लाजवाब•
जवाब देंहटाएंक्या बात ..जीवन की तल्खी लिखी लिखा जीवन का सत्य
जवाब देंहटाएंऐसे साहित्य को मेरा सहर्ष नमन
Thank you very much Sir.
जवाब देंहटाएंपैदा होने साथ लम्बे बुढ़ापे का जीवन इन यादों के ख़ज़ाने संजोये रखता है ...
जवाब देंहटाएंजीवन का यथार्थ तो यही है ...
हार्दिक आभार आदरणीय नासवा जी।
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर
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