जूठी प्लेटो का इंतज़ार को नवंबर 28, 2017 लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप टिप्पणियाँ Lokesh Nashine28 नवंबर 2017 को 11:20 pm बजेबहुत खूबजवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंअपर्णा वाजपेयी28 नवंबर 2017 को 11:26 pm बजेशुक्रिया नदीश जीजवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंरेणु29 नवंबर 2017 को 7:08 pm बजेइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंरेणु29 नवंबर 2017 को 7:09 pm बजेबहुत मर्मान्तक है आपके शब्द- प्रिय अपर्णा | आँखें नमी से बोझिल हो गयी और खुद से नजरे चुराने लगी | यही है सभ्य समाज का वीभत्स सत्य !जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंमन की वीणा29 नवंबर 2017 को 7:43 pm बजेजीवन के हर पहलू का सत्य!!!! आपकी लेखनी और लेखन कमाल कमाल कमाल।शुभ संध्या ।जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंAnita Laguri "Anu"4 दिसंबर 2017 को 6:14 pm बजेकडुवा सत्य,ना जाने कैसे इतनी असमानताएं बड़ गई,जुठे भोजन के लिए भी इंसानियत भर्ती हैं हर रोज .. मार्मिक अहसास.!!जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नदीश जी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मान्तक है आपके शब्द- प्रिय अपर्णा | आँखें नमी से बोझिल हो गयी और खुद से नजरे चुराने लगी | यही है सभ्य समाज का वीभत्स सत्य !
जवाब देंहटाएंजीवन के हर पहलू का सत्य!!!! आपकी लेखनी और लेखन कमाल कमाल कमाल।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या ।
कडुवा सत्य,ना जाने कैसे इतनी असमानताएं बड़ गई,जुठे भोजन के लिए भी इंसानियत भर्ती हैं हर रोज .. मार्मिक अहसास.!!
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