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बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नदीश जी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मान्तक है आपके शब्द- प्रिय अपर्णा | आँखें नमी से बोझिल हो गयी और खुद से नजरे चुराने लगी | यही है सभ्य समाज का वीभत्स सत्य !
जवाब देंहटाएंजीवन के हर पहलू का सत्य!!!! आपकी लेखनी और लेखन कमाल कमाल कमाल।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या ।
कडुवा सत्य,ना जाने कैसे इतनी असमानताएं बड़ गई,जुठे भोजन के लिए भी इंसानियत भर्ती हैं हर रोज .. मार्मिक अहसास.!!
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