जूठी प्लेटो का इंतज़ार


टिप्पणियाँ

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  2. बहुत मर्मान्तक है आपके शब्द- प्रिय अपर्णा | आँखें नमी से बोझिल हो गयी और खुद से नजरे चुराने लगी | यही है सभ्य समाज का वीभत्स सत्य !

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  3. जीवन के हर पहलू का सत्य!!!! आपकी लेखनी और लेखन कमाल कमाल कमाल।
    शुभ संध्या ।

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  4. कडुवा सत्य,ना जाने कैसे इतनी असमानताएं बड़ गई,जुठे भोजन के लिए भी इंसानियत भर्ती हैं हर रोज .. मार्मिक अहसास.!!

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