तुम बस थोड़ा जोर से हंसना
तुम बस थोड़ा जोर से हंसना इतनी जोर से कि दिमाग में यह ख्याल रत्ती भर भी ना आए कि हंसने से आंखों के नीचे उभर आती हैं झुर्रियां , कि गालों पर उम्र की रेखाएं थोड़ी ज्यादा पैनी नज़र आती हैं , कि हंसने पर तुम्हारे दांत थोड़े पीले दिखते हैं , बस हंसना और महसूसना उस खुशी को जो हंसने में तुम्हें महसूस होती है , अपने चेहरे की बनावट, उम्र का असर और अनुभव की सुर्ख़ियों को कुछ देर के लिए भूल जाना , हंसना कि हंसने से रोशन होती है सारी फिज़ा , मिट जाता है गुबार, आसमान का रंग थोड़ा और नीला हो जाता है और धरती! थोड़ी और हरी।। ©अपर्णा बाजपेई
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नदीश जी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मान्तक है आपके शब्द- प्रिय अपर्णा | आँखें नमी से बोझिल हो गयी और खुद से नजरे चुराने लगी | यही है सभ्य समाज का वीभत्स सत्य !
जवाब देंहटाएंजीवन के हर पहलू का सत्य!!!! आपकी लेखनी और लेखन कमाल कमाल कमाल।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या ।
कडुवा सत्य,ना जाने कैसे इतनी असमानताएं बड़ गई,जुठे भोजन के लिए भी इंसानियत भर्ती हैं हर रोज .. मार्मिक अहसास.!!
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