नए साल में खुशियों का चश्मा
नया साल टकटकी लगाए
झाँक रहा है कैलेण्डर से,
जानता है
महीने वही होंगे
दिन भी....
बस उबासियों की हालत
सुधर जायेगी.
अम्मा का टूटा चश्मा
शायद बदल जाए,
बाबा की छड़ी की मूठ
हो सकता है बना दी जाए नयी,
गुड्डू को दिया जाय ताज़ा खाना शायद.
अगले बरस,
शायद कनस्तर में आंटा
थोड़ा ज्यादा हो जाय.
भूखे का पेट भर दिया जाय पूरा,
पापा को चंद मिनट मिल जाएँ ज्यादा...
अपने बच्चे की किलकारियां सुनने करने
के लिए,
नए साल में,
सरहद पर खून के छींटे
शायद कम गिरे,
छोड़ दिए जांय बेक़सूर कैदी,
सरकारी कार्यालयों में
धूल फांकती फाइलें
ले ही आयें घरों में उजास,
न्याय की राह देखता मंगलू
शायद पा ही जाए अपना हक़ ....
नया बरस शायद खोज ही लाये
सबकी खुशियों की चाभी!
उम्मीद के बादल
बरस रहे हैं मूसलाधार......
नए वर्ष में
हवाओं का रुख बदल जाएगा
या बदल जायेगा हमारा नज़रिया ही.
(Picture credit google)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-12-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2831 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आभार दिलबाग जी,
हटाएंआभार दिलबाग जी,सादर
हटाएंभावानुकूल प्रस्तुति, आवश्यकताओं और ज़िम्मेदारियों के हिसाब से। जब हम प्रेम को आधा-आधा जी सकते हैं एक कम्बल में फिर मिल बाँटकर खुशियाँ क्यों नहीं।
जवाब देंहटाएंसमय की चाल में बदलाव हमारे बस में नहीं लेकिन नज़रिया बदलना तो हमारे हाथ है....आशाओं की गुनगुनी धूप-सी आपकी नव वर्ष के स्वागत में बोधात्मक रचना.
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनायें अपर्णा जी. नव वर्ष की अग्रिम मंगलकामनाएें.
व्याख्यात्मक टिप्पणी से आपने कविता का मान badha दिया आदरणीय रवीन्द्र जी. समय पर हमारा वश नहीं पर खुद पर तो है.
हटाएंसादर आभार
सोच भर है कुछ नया नया होने का
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
आप की रचना को शुक्रवार 29 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता जी रचना को मंच पर स्थान देने के लिये.
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीतू जी
हटाएंसादर
प्रिय अपर्णा - आशा पर ही संसार जीवित है -- इसी आशा को शब्दों में साकार किया आपने | बधाई और नववर्ष पर अनंत शुभकामनाये | आपकी लेखनी की धार और प्रखर हो !!!!!!!
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जवाब देंहटाएंप्रिय रेनू दी, आपको भी नव वर्ष की मंगल kaamanaayen.
सादर
बहुत खूबसूरत रचना. आशा से परिपूर्ण है. काश सब कुछ सच हो जाए.
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