माँ बनना.... न बनना

लेबर रूम के बेड पर तड़पती हुई स्त्री 
जब देती है जन्म एक और जीव को 
तब वह मरकर एक बार फिर जन्म लेती है
अपने ही तन में,
अपने ही मन में,
उसके अंतस में अचानक बहती है एक कोमल नदी
जिसे वह समझती है धीरे धीरे;
लेकिन दुनिया उस नदी की धार से 
हरिया जाती है,
माँ बनना आसान नहीं होता

और

माँ न बनना....
उससे भी ज्यादा कठिन,
सवालों और तिरछी नज़रों के जख़्म 
लेबरपेन से ज्यादा कष्टकारी होते है,
कि दुनिया हर उस बात के लिए सवाल करती है
जो आप नहीं होते...
औरत के लिए माँ बनना न बनना
उसकी च्वाइस है
न कि उसकी शारीरिक बाध्यता.
यदि न दे वो संतान को जन्म 
स्त्री का ममत्व मर तो नहीं जाता 
न ही सूख जाती है
उसकी कोमल भावनाओं की अन्तःसलिला
औरत जन्म से ही माँ होती है
सिर्फ तन से नहीं
मन से भी..

(Image credit Pixabay)





टिप्पणियाँ

  1. वाह...
    जीवन का सच उकेर दिया
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय दी, सराहना के लिए बहुत बहुत आभार आपका।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना अपर्णा जी।
    समाज का एक पूरा सच सामने है...एक औरत होने का दर्द शायद एक औरत ही समझ सकती है।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर रचना
    माँ बनना या ना बनना एक स्त्री की मर्जी है.... उचित बात है.

    जवाब देंहटाएं
  6. स्नेह और दर्द की अनुभूति का अच्छा तालमेल है।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर रचना अपर्णाजी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार सुधीर जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
      सादर

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. कुशाल जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है। सादर आभार

      हटाएं
  9. औरत जन्म से ही माँ होती है तन से ही नहीं
    मन से भी....
    वाह!!
    बहुत सुन्दर सटीक...

    जवाब देंहटाएं
  10. औरत जन्म से ही माँ होती है
    सिर्फ तन से नहीं
    मन से भी..
    बेहद उम्दा सुंदर सटीक रचना
    भावपूर्ण हृदयस्पर्शी 👌

    जवाब देंहटाएं
  11. संवेदनात्मक अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय छगनलाल जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है। बहुत बहुत आभार।
      सादर

      हटाएं
  12. नारी मन नदी है ... धारा है कोमल हृदय है ... ज़रूरी नहीं उसे दिखाए अपनी ममता की कसौटी ...
    नारी मन को सजीव करती रचना ... बहुत सुंदर ...

    जवाब देंहटाएं
  13. औरत जन्म से ही माँ होती है
    सिर्फ तन से नहीं
    मन से भी..
    बहुत ही लाजवाब रचना प्रिय अपर्णा -- सचमुच बचपन से ही माँ के अलग -० अलग रूप जीती है एक नारी | छोटे भाई बहनों के लिए वात्सल्य भाव -- बड़ों के लिए करुणा का प्रवाह भीतर ही बहता है | ममत्व के बिना उसका कोई रिश्ता कहाँ परिपूर्ण होता है |
    गहरी संवेदना जगाती रचना के लिए शुभकामनाये | सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मृत्यु के बाद एक पल

आहिस्ता -आहिस्ता

प्रेम के सफर पर