नया इतिहास




मेरी जेबों में
तुम्हारा इतिहास पड़ा है
कितना बेतरतीब था;
तुम्हारा भूत.....
वक्त की नब्ज़ पर हाँथ रख,
पकड़ न पाया
समाज का मर्ज़,
मुगालते में ही रहा;
कि... वक्त मेरी मुट्ठी में है,
कानों में तेल डाल,
 सुनता रहा,
अपनी ही गौरव-गाथा!

तब तक 
झुका लिया मैंने,
घड़ी की सुइयों को अपनी ओर,
अब रचा जा रहा है
नया इतिहास......
प्रेम के दस्तावेजों में
नफ़रत नहीं अमन के गीत हैं
सरहदों पर खून के धब्बे नहीं
गुलाब की फसलें हैं, 
शेष बहुत कुछ बचा है  
इतिहास के पन्नों में जुड़ने को...
जैसे नदी की कथा,
हवा की व्यथा,
खतों का दर्द,
जुबां का फ़र्ज़, 
शर्म का नकाब,
गरीबों का असबाब,
और भी बहुत कुछ
बहुत कुछ बहुत कुछ......
तुम कुछ कहते नहीं!!!!
इस इतिहास में तुम्हारी भी कथा होगी
जो चाहो लिखना
बस झूठे दंभ का आख्यान मत लिखना.

(Image credit Pixabay.com)

टिप्पणियाँ

  1. बेहद खूबसूरत शब्दों से सजी समय के दम्भ को तोड़ती एक विचारणीय कविता। तुम्हारी अपनी धरोहर में से निकली एक कविता लगती है ये। जैसे लिखने के लिए नहीं लिखी गयी बल्कि साज, समाज, अवसाद, प्रेम सब कुछ शब्दों में स्वयं ही उतर आया हो।
    बधाई एक अमूल्य कृति के लिए।

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  2. बहुत ख़ूब ...
    बेतरतीबी बिखरे इतिहास के लमहों को मोड़ना और फिर से नया इतिहास गड़ना ... जो कुछ छूट हया है उसे लिखना ...
    गहरे ख़यालात से जोकि रचना ...

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.05.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2980 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/05/71.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  6. बहुत ही सुंदर रचना, शब्दों के उतार चढ़ाव ने इसे और खुबसूरत बना दिया है।

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