तुम बस थोड़ा जोर से हंसना
तुम बस थोड़ा जोर से हंसना इतनी जोर से कि दिमाग में यह ख्याल रत्ती भर भी ना आए कि हंसने से आंखों के नीचे उभर आती हैं झुर्रियां , कि गालों पर उम्र की रेखाएं थोड़ी ज्यादा पैनी नज़र आती हैं , कि हंसने पर तुम्हारे दांत थोड़े पीले दिखते हैं , बस हंसना और महसूसना उस खुशी को जो हंसने में तुम्हें महसूस होती है , अपने चेहरे की बनावट, उम्र का असर और अनुभव की सुर्ख़ियों को कुछ देर के लिए भूल जाना , हंसना कि हंसने से रोशन होती है सारी फिज़ा , मिट जाता है गुबार, आसमान का रंग थोड़ा और नीला हो जाता है और धरती! थोड़ी और हरी।। ©अपर्णा बाजपेई
जलवा दिया ना बेवा का घर
जवाब देंहटाएंकब से कर रहे हैं सचेत
लेकिन चेतने को कोई तैयार ही नहीं।
बेहतरीन रचना
शब्दों पर आप की पकड़ लाजवाब है। और सोने पे सुहागा उसके भाव। विषय चयन बेहद शानदार। अद्भुत !!!
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसही कहा!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/69.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार राकेश जी
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