घूँट--घूँट प्यास को मई 10, 2018 लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप ( नोट- कविता में बेवा के घर को सिर्फ एक प्रतीक के तौर पर) पढ़ें। टिप्पणियाँ Rohitas Ghorela10 मई 2018 को 10:54 am बजेजलवा दिया ना बेवा का घरकब से कर रहे हैं सचेतलेकिन चेतने को कोई तैयार ही नहीं।बेहतरीन रचनाजवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंNITU THAKUR10 मई 2018 को 11:23 am बजेशब्दों पर आप की पकड़ लाजवाब है। और सोने पे सुहागा उसके भाव। विषय चयन बेहद शानदार। अद्भुत !!!जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंशुभा 10 मई 2018 को 5:25 pm बजेवाह!!बहुत खूब !जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंRoli Abhilasha11 मई 2018 को 6:56 pm बजेसही कहा!जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंRAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI'14 मई 2018 को 9:26 am बजेआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/69.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंअपर्णा वाजपेयी14 मई 2018 को 2:58 pm बजेसादर आभार राकेश जीजवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
जलवा दिया ना बेवा का घर
जवाब देंहटाएंकब से कर रहे हैं सचेत
लेकिन चेतने को कोई तैयार ही नहीं।
बेहतरीन रचना
शब्दों पर आप की पकड़ लाजवाब है। और सोने पे सुहागा उसके भाव। विषय चयन बेहद शानदार। अद्भुत !!!
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसही कहा!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/69.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार राकेश जी
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