आहिस्ता -आहिस्ता
समय हो तो अपनी हथेली पर भी रख लेना एक फूल, घूम आना स्मृति के मेले में, कहानी की किताब में झांक कर, कर लेना बातें ' पंडित विष्णु शर्मा ' से, या घर ले आना ' नौकर की कमीज़ ' सुन लेना रजनीगंधा की फूल या ठुमक लेना ' झुमका गिरा ' की धुन पर कह लेना खुद से भी "Relax ! चंद कदम ही तो हैं, चल लेंगे आहिस्ता-आहिस्ता हम भी, तुम भी।।
जलवा दिया ना बेवा का घर
जवाब देंहटाएंकब से कर रहे हैं सचेत
लेकिन चेतने को कोई तैयार ही नहीं।
बेहतरीन रचना
शब्दों पर आप की पकड़ लाजवाब है। और सोने पे सुहागा उसके भाव। विषय चयन बेहद शानदार। अद्भुत !!!
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसही कहा!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/69.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार राकेश जी
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