मृत्यु के बाद एक पल
उसने लरजते हुए हांथों से मेरी ओर एक लिफ़ाफा बढ़ाया उस वक्त उसकी आंखों में वह नहीं थी, मैने सोचा, क्या ही हो सकता है! उस पल, जब होंठों पर बर्फ़ की सिल्ली रख जाय, कहीं कुछ ऐसा तो नहीं; जो वापसी का दरवाज़ा खोल दे. उधार की आंखों से मैने उसे कांपते हुए देखा लिफाफा मेरी उंगलियों से टकरा चुका था, खुद पर नंगा होने की हद तक बेशर्मी डालने की कोशिश कर लिफ़ाफा खोलते हुए मैने देखे; सिर के कटे हुए कुछ बाल उसके बच्चे के, उस पल बर्फ फिर बरसी आसमां से नहीं आंखों से ।। PC Wikipedia @मानव कौल की बातचीत सुनते हुए
जलवा दिया ना बेवा का घर
जवाब देंहटाएंकब से कर रहे हैं सचेत
लेकिन चेतने को कोई तैयार ही नहीं।
बेहतरीन रचना
शब्दों पर आप की पकड़ लाजवाब है। और सोने पे सुहागा उसके भाव। विषय चयन बेहद शानदार। अद्भुत !!!
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसही कहा!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/69.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार राकेश जी
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