बस एक ख़्वाब था छू ले कोई!
बस एक ख़्वाब था छू ले कोई ,
सहला दे ज़रा इन ज़ख्मों को
इक लम्हा अपना दे जाये और
बाँट ले मेरे अफ़सानों को।
कुछ नाज़ुक शब्द पिरोकर के
एक हार मुझे पहना जाएँ,
कुछ सच्ची -मुच्ची बातों से
वो मेरा दिल बहला जाएँ।
कुछ सूरत ऐसी बन जाए
वो बैठे मेरे पहलू में,
मैं एक नदिया बन बह जाऊं
वो एक समुन्दर हो जाएं।
कुछ रेत अभी भी बाक़ी है
कुछ किरचें आँखों में चुभतीं,
कुछ छाले दुखते हैं अब भी,
कुछ दर्द अभी भी रिसता है।
कुछ ख़्वाब अधूरे जाग रहे
कुछ उम्मीदें हैं राह तकती,
कुछ आस बची है आँखों में
कुछ बाकी हैं अलफ़ाज़ अभी।
#AparnaBajpai
(Image credit google)
बस एक ख़्वाब था छू ले कोई ,
जवाब देंहटाएंसहला दे ज़रा इन ज़ख्मों को
इक लम्हा अपना दे जाये और
बाँट ले मेरे अफ़सानों को....
एक यही ख्वाब हैं जो जीने की ऊर्जा और वजह दे जाते हैं। ख्वाबों के ये दीये सदैव उजाले भरते रहें। सुन्दर रचना हेतु बधाई।
इतनी सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत आभार अग्रज।
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुदंर कविता मैम
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ६ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सपनों के सभी रंग को आत्मसात करती सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंख्वाब ही जीने का सहारा होते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है आपकी
बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
बहुत सुंदर👌👌👌👌👌👌
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