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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस महोत्सव

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योग-शिक्षक प्रशिक्षण शिविर का समापन दसवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस महोत्सव के साथ संपन्न  भारत स्वाभिमान न्यास,पतंजलि योग समिति, युवा भारत एवं पतंजलि किसान सेवा समिति के संयुक्त तत्वावधान में 2 जून से 21 जून तक चलने वाले 100 घंटे का सह योग शिक्षक प्रशिक्षण शिविर का समापन आज डीसीएम स्कूल आफ एक्सीलेंस बीपीएम हाई स्कूल बर्मा माइन्स जमशेदपुर के मैदान में आयोजित दसवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रंगारंग महोत्सव के साथ संपन्न हुआ।आज के समारोह का उद्घाटन मुख्य अतिथि भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य रामबाबू तिवारी, भाजपा नेता कुलवंत सिंह बंटी एवं दीपक झा,भारत स्वाभिमान के जिला प्रभारी अजय कुमार झा, पतंजलि विधि प्रकोष्ठ के प्रभारी एडवोकेट सतीश सिंह,बीपीएम हाई स्कूल की प्रधानाध्यापिका रंजीता गांधी एवं राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका अनीता शर्मा के द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन एवं भारत माता की तस्वीर पर माल्यार्पण के साथ किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में समारोह को संबोधित करते हुए रामबाबू तिवारी ने योग को सिर्फ एक सालाना आयोजन के रूप में ना अपनाते हुए इसे प्रतिदिन अभ्यास करने की आवश्यकता प

आप हमेशा गलतियां करते हैं

 आप हमेशा गलतियां करते हैं  कभी बड़े होकर  कभी छोटे होकर  कभी बोलकर  कभी चुप रहकर  कभी कह कर  कभी न कहकर  कभी छुप कर  कभी सामने आकर  गलतियां न करने के लिए कुछ नहीं करना होगा  कुछ न करने के लिए कुछ नहीं होना होगा  ' कुछ नहीं ' हो पाना बड़ा मुश्किल है यार! जैसे होते हुए भी न होना कितना मुश्किल है यार!!

"Phooli" film review Hindi

  “फूली“ फिल्म समीक्षा  फूली फिल्म के निर्देशक अविनाश ध्यानी के निर्देशन का जादू सिनेमा घरों की स्क्रीन पर दर्शकों को खींच रहा है। 7जून को रिलीज़ हुई यह फिल्म दर्शकों को प्रभावित कर रही है। फ़िल्म के निर्माता मनीष कुमार के होम टाउन जमशेदपुर में यह फिल्म अब भी दर्शकों में उत्साह बनाए हुए है। उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म “फूली” एक ऐसी लड़की की कहानी कहती है जो अपने जीवन की कठिनाइयां से लड़ते हुए अपने सपने को पूरा करती है। फिल्म का कथानक इसकी सबसे बड़ी ताकत है और “फूली” के रोल में रिया बलूनी अपने किरदार में उन सभी लड़कियों का नेतृत्व कर रही हैं जो लड़कियां अपने हौसलों से आकाश की ऊंचाइयों को नाप लेना चाहती हैं। 'अपने जीवन में जादू हमें खुद करना होता है' यह एक लाइन फिल्म की ऐसी टैगलाइन है जो पूरी फिल्म को बयां करती है।  हम सब के जीवन में कठिनाइयों का अंबार लगा है। हम हर रोज उन मुश्किलों से लड़ रहे हैं कि हम उनके पीछे हो रहे उस जादू को देख नहीं पाते जो बस होता रहता है। जीवन को बदलने के लिए हमारे प्रयासों से कुछ ना कुछ ऐसा होता रहता है जो हमें उस समय नहीं दिखता लेकिन एक लंबी अ

मेरे जाने के बाद

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मेरे जाने के बाद   मुझे तुम ख़ुद से बाहर निकाल देना, उस बरस जैसे निकाल फेंका था वह पूरा महीना; जो हमने एक दूसरे से दूर गुजारा था, याद तो जरूर होगा तुम्हे! तुम कहते हो बुरे वक्त को निकाल फेंको जीवन से, अच्छे दिनों की मियाद खुद ब खुद बढ़ जाती है, जैसे बालों से निकाल दिया जाता है मुरझाया फूल, पैरों से कांटा, उधारी की याद, विरह की रात, छोड़ देना मुझे भी उस ज़ख्म की तरह  जिसे भरने के लिए भूलना पड़ता है।।

कैसी लगी #तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया

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  फिल्म समीक्षा हिंदी में  #कृति ​ सेनन और #शाहिद ​ कपूर की मुख्य भूमिकाओं वाली फिल्म 9फरवरी के 2024को सिनेमा घरों में रिलीज़ की गई। यह फिल्म #jiocinema ​ ने बनाई है और फिल्म आज के जमाने की कहानी है। यह एक Romantic Drama है जो एक साइंसेटिस्ट और एक फीमेल robot के बीच हुए रिश्ते की मज़ेदार कहानी है। आज के युवाओं को ध्यान में रख कर बनाई गई फ़िल्म युवाओं को पसंद आ रही है। #shahidkapoor ​ और #kritisenon ​ की acting ke साथ साथ धर्मेंद्र और डिंपल कपाड़िया भी फिल्म में भूमिका निभा रहे हैं। मनोरंजक तरीके से बनाई गई फिल्म पैसा वसूल का अनुभव देती है हां फिल्म देखने की समय ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। #filmora ​ #filmoramobile ​, #BollywoodmovieReviewinHindi ​,   #Teri ​baatonmeinaisauljhajiya #filmreviewinHindi ​, #filmreviews ​ , #shahidkapoor ​ , #kritiSenon ​ , #bollywood ​

आहिस्ता -आहिस्ता

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  समय हो तो अपनी हथेली पर भी रख लेना एक फूल, घूम आना स्मृति के मेले में, कहानी की किताब में झांक कर, कर लेना बातें  ' पंडित विष्णु शर्मा ' से, या घर ले आना ' नौकर की कमीज़ ' सुन लेना रजनीगंधा की फूल या ठुमक लेना ' झुमका गिरा ' की धुन पर कह लेना खुद से भी "Relax ! चंद कदम ही तो हैं, चल लेंगे आहिस्ता-आहिस्ता हम भी, तुम भी।।

JORAM फिल्म समीक्षा हिंदी

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  JORAM' फ़िल्म मुझे कैसी लगी  मनोज बाजपेई की फिल्म ' जोराम ' जिसे कई पुरस्कारों से नवाजा गया है के बारे में बात करते हैं। मुझे यह फिल्म कैसी लगी।  यह फिल्म एक ऐसे पिता की है जो व्यवस्था से भाग रहा है अपनी बच्ची को लेकर. एक पिता का दर्द, एक मजदूर की त्रासदी, शोषण से लड़ रहे एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जो गरीब है, जो व्यवस्था से मजबूर है, जो लाचार है, और जो चाहता है कि उसके जल, जंगल, जमीन बचे रहे। जो चाहता है की पुरानी सभ्यता बची रहे। लोगों में इंसानियत बची रहे। यह फिल्म ऐसे सत्ता के ठेकेदारों और उनका सामना करने वाले लोगों की सच्ची दास्तां है।  झारखंड के आदिवासियों पर  आधारित यह कहानी एक ऐसे मजदूर की कहानी है जो मुंबई के  कंक्रीट के जंगलों में कमाने के लिए जाता है और व्यवस्था का शिकार हो जाता है । यह फिल्म OTT पर भी रिलीज हो चुकी है, अगर आप ज़रा भी सामाजिक सरकारों के प्रति जागरूक हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें या फिल्म पूरे परिवार के साथ बैठकर देखी जा सकती है बेहतरीन अभिनय तथा चुस्त निर्देशन के लिए आप इसे याद रखेंगे। नीचे दिए गए लिंक पर जाकर review को अपने लाइक और शेयर से आगे बढ़