दूर हूँ....कि पास हूँ

मैं बार-बार मुस्कुरा उठता हूँ तुम्हारे होंठो के बीच, बेवज़ह निकल जाता हूँ तुम्हारी आह में, जब भी उठाती हो कलम लिख जाता हूँ तुम्हारे हर हर्फ़ में, कहती हो दूर रहो मुझसे.... फ़िर क्यों आसमान में उकेरती हो मेरी तस्वीर? संभालती हो हमारे प्रेम की राख; अपने ज्वेलरी बॉक्स में, दूर तो तुम भी नहीं हो ख़ुद से फ़िर मैं कैसे हो सकता हूँ? तुम्हारे तलवे के बीच वो जो काला तिल है न; मैं वंही हूँ, निकाल फेंको मुझे अपने वज़ूद से, या यूँ ही पददलित करती रहो, उठाओगी जब भी कदम, तुम्हारे साथ -साथ चलूंगा, और तुम! धोते समय अपने पैर, मुस्कुराओगी कभी न कभी. #अपर्णा बाजपेई (Image credit to dretchstorm.com)