झूठे बाज़ार में औरत


एक पूरा युग
अपने भीतर जी रही है स्त्री,
कहती है ख़ुद को नासमझ,
उगाह नहीं पायी अब तक
अपनी अस्मिता का मूल्य,
मीडिया की बनाई छवि में
घुट-घुट कर होंठ सी लेती है स्त्री,
सड़कों पर कैंडल मार्च करती भीड़ में
असली भेड़ियों को पहचान लेती है स्त्री 
चुप है,
कि उसके नाम पर 
उगाहे जा रहे हैं प्रशस्ति पत्र,
रुपयों की गठरियाँ सरकाई जा रही हैं
गोदामों में,
स्त्री विमर्श के नाम पर
झूठ के पुलिंदों का
अम्बार लग रहा है,
लोग खुश हैं!
कि रची जा रही है 
स्त्री की नई तस्वीर,
खोजती हूँ
कि इस तस्वीर से 
आम औरत ग़ायब है?

(Image credit google)


टिप्पणियाँ

  1. स्त्रियों की दशा को चरितार्थ करती रचना..
    बहुत बढिया..

    जवाब देंहटाएं
  2. अत्यधिक यथार्थ चित्रण जो दिखती मनुष्य के महासागर रूपी मस्तिष्क में संवेदनशीलता की अपार कमी है।

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यधिक यथार्थ चित्रण जो दिखती मनुष्य के महासागर रूपी मस्तिष्क में संवेदनशीलता की अपार कमी है।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. भूल सुधार.. "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 22 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छा लिखा है।
    चेहरे पर चेहरे का ऐसा चलन है कि जो होता है वो दिखता नहीं। हम तो बस वही देख पाते हैं जो दिखाया जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह्ह...बेहद सारगर्भित...हृदयस्पर्शी सटीक अभिव्यक्ति अपर्णा जी।
    स्त्री सदैव प्रदर्शन की वस्तु रही है समाज से लेकर चौराहे तक। कभी अस्मिता के नाम पर कभी अबला के नाम पर कभी दया का कटोरा पकड़े।

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन रचना.....,मर्मस्पर्श करने वाली बात कही है आपने. आम औरत का संघर्ष‎ कहाँ दिखता है .

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर रचना मन को छू गई आप की सारगर्भित रचना।

    जवाब देंहटाएं
  10. शानदार रचना आपकी जो कि हमेशा यथार्थ पर एक करारा प्रहार होती है एक पुरानी पढ़ी पंक्तियाँ याद आ रही है,
    "कुछ पढा हुवि कुछ मेरे शब्द. .
    पहले महापुरुषों को पथभ्रष्ट करने के लिए अप्सराएँ स्वर्ग से पृथ्वी पर भेजी जाती थी, आज पथ भ्रष्टों को खुश करने निजी स्वार्थ की पूर्ति करवाने हेतू सुंदरियां भेजी जाती है, वहां देव पुरूषों का स्वार्थ था यहां शैतानों का स्वार्थ है पर दोनो जगह चारा या बलि का समान एक है।

    ---------
    देवता वर दाता कहे जाते हैं, देवों ने हम पृथ्वी वालों को वर तो पता नही क्या दिया, हाँ अपनी कूटनीतियां तो पुरी दे डाली, इंद्र अपना सिंहासन बचाने के फेर मे येन केन प्रकारेण षड्यंत्रों के द्वारा ( विरोधी दलों से ) महापुरुषों, ऋषि मुनियों को अपने पथ से डिगाता रहा, आज मानव देवों के उस अवगुण को यथा प्रकार उपयोग कर रहा है, उद्येश्य वही साधन भी वही सिर्फ समय के साथ थोडा रूप बदला है, प्रवृति, प्रकृति, आदतें और लालसाऐं नही बदली।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह प्रिय कुसुम जी बहुत ही सटीक यथार्थ परक बात लिख दी आपने | स्वर्ग के लोभी देवताओं की कूटनीतिक चालों का उनसे कौन हिसाब मांगे ? देवता जो ठहरे !! नारी की गरिमा को खंडित करने में ना देवों ने कसर छोडी ना दानवों ने और मानवों ने तो उसका अस्तित्व और पहचान ही दाव पर लगा दिए | बहुत ही सार्थक शब्द मन झझकोर गये | सस्नेह आभार |

      हटाएं
  11. वाह!!!
    बहुत सुन्दर ,सार्थक एवं मर्मस्पर्शी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  12. प्रिय अपर्णा -- वो बात जो हम सोच कर रह जाते हैं , बड़ी सुघड़ता से अपने काव्य कौशल से विशिष्ट बना देना आपकी खूबी है | बहुत शानदार शब्द और लक्ष्य पर तीखी नजर | बहुत ही बेहतरीन नारी विमर्श !! लिखती हूँ शाबाश !!! साथ में मेरा प्यार |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेनू दी आप की सराहना और प्यार दोनों मिलना सौभाग्य की बात है। खुशनसीब हूँ कि आप जैसे लोग इस ब्लॉग जगत में मिले जो हमेशा हौसला बढ़ाते हैं। बहुत बहुत आभार आपका।

      हटाएं
  13. बख़ूबी चित्रित किया आपने तथाकथित सभ्य समाज की सच्चाईयों को। अनोखी शैली में शब्दों के तमाचे, वाह्..👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अमित जी ब्लॉग पर आपका स्वागत है। सराहना के लिए हार्दिक आभार।
      आप सब की प्रतिक्रियाएं मेरे लिए अमूल्य हैं।
      सादर

      हटाएं
  14. बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कविता ! स्त्री जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करती .
    हिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आशुतोष जी,
      ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है।
      आपका हृदयतल से आभार

      हटाएं
  15. स्त्री स्वालम्बन की बात हो चाहे
    स्त्री सम्मान की बात हो
    इन दोनों ही बातों में आम स्त्रियाँ शामिल नही हैं... वो तो आज भी पहले जेसी ही हालात में खुश हैं या फिर खुद का स्त्री होने कि वजह से कूप मंडूक समझ बैठी है.

    मनोदशा में बदलाव की महती आवश्यकता है.

    अच्छी रचना.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रोहितास जी, आपकी सारगर्भित टिप्पणी रचना को नए आयाम देती है . ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है . आप की प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा है .
      सादर

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मृत्यु के बाद एक पल

आहिस्ता -आहिस्ता

प्रेम के सफर पर