समय की उड़ान


ढिबरी की रौशनी में पढ़ती हुई लड़की
भरती है हौंसलों की उड़ान,
अंतरिक्ष का चक्कर लगाती है
चाँद तारों को समेट लाती है अपनी मुट्ठी में,
जब जब आंसुओं के मोती देखती है
माँ की आँखों में,
खिलखिलाकर एक सूरज उगाती है
उसके होंठों पर,
माँ की बिवाइयों पर लगाती है
अपनी परवाज़ का लेप,
पिता की टोपी पर
जड़वाती है अपनी क़ाबिलियत के हीरे,
एक दिन ढिबरी की रौशनी में
पढ़ती हुयी लड़की;
लाती है बदलाव की बयार
रौंद देती है ज़ुल्मो सितम की कहानियां.....
फ़िर कोख से कब्र तक
उसके होने पर जलाये जाते हैं खुशियों के चिराग
उल्लास के गीतों में होता है उसका स्वागत
ढिबरी की रौशनी में पढ़ती हुयी लड़की
बन जाती है समय की उड़ान......
हमारे घरों में मुस्कुराती है,
खुशियों के गहने
सबके होठों पर सजाती है।

(Image credit google)



टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर।
    यकीनन कुछ पा लेने की सांत्वना ही
    लेप बन जाती हर दर्द पर,
    क्या फर्क पड़ता है
    कि फटी बिवाइयों के पांव में चप्पल नहीं
    मन की उम्मीद हर दूरी कम करती है।

    भाव ही भाव भरे हैं कविता में।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया दोस्त , तुम्हारे शब्द ही तो हौंसला हैं ढिबरी की रोशनी में पढ़ती हुयी लड़की के...

      हटाएं
  2. वाह ... ग़ज़ब की उड़ान ... आशा और सपनों के बीज के अंकुर उगाती लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ९ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर...।
    ढिबरी की रोशनी में पढकर सचमुच बहुत सी लड़कियों ने उड़ान भरी है बहुत सुन्दर लिखा है
    माँ की बिवाइयों से लेकर पिता की टोपी तक ...
    वाह!!!
    बढिया उड़ान...

    जवाब देंहटाएं
  5. फिर कोख से कब्र तक..... वाह! बहुत खूब!

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय अपर्णा -- इस मेहनती और खुशमिजाज नन्ही परी की उड़ान ऊँची क्यों ना होगी ? इसके हौंसले जो इतने बुलंद हैं | जो संघर्ष की अग्न में तपते हैं , वही निश्चित रूप से कुंदन बन चमकते हैं | ऐसे ही किसी बच्चे के लिए मेरी पंक्तियाँ स्मरण हो आई मुझे --------
    तुम्हारे ये धरती - अम्बर -
    ये विश्व तुम्हारा हो ;
    आज भले दुविधाओं में उलझा -
    उज्जवल भविष्य तुम्हारा हो ;
    तपो रे ! संघर्ष -अगन में -
    बन जाओं दमकता कुंदन -
    वरन करो न्याय -पथ का ही -
    पाओ विपुल यश- वैभव धन ;
    संतप्त मानवता की पीडको हरना -
    बस लक्ष्य तुम्हारा हो !!
    तुम्हारे ये धरती - अम्बर -
    ये विश्व तुम्हारा हो ;
    आज भले दुविधाओं में उलझा -
    उज्जवल भविष्य तुम्हारा हो !!!!!!!!!!!!!!
    सस्नेह शुभकामनाओं के साथ
    ---------

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मृत्यु के बाद एक पल

आहिस्ता -आहिस्ता

प्रेम के सफर पर