प्रेम और शांति के बीच हम

 किसे नहीं पसंद है

रातों का मख़मली होना,

सुबह के माथे पर उनींदी ओस की बूंदें,

झुमके के साथ हिलते बालों का मचलना,

वे इलाइची की गंध में पगी चाय की खुशबू खोजते हैं,

जैसे तलाशते हैं अफ़ग़ान बच्चे शांति का एक कोना,

जहां बंदूकों और बमों की आवाजें न हों,

जब तालिबानी लड़ाकों की मासूमियत मर जाती है,

तभी धरती से सूख जाती है शबनम!

रात के आंचल पर बिखर जाता है मासूम तारों का लहू,

क्यों न चाय के गिलास में पिला दी जाय शांति की दवा,

हिंसक मंसूबों पर उड़ेल दिए जांय मासूम बच्चों के कहकहे,

आओ! दुनिया के माथे पर एक बोसा दिया जाय

और सोख लिया जाय सारा ज़हर..

फ़िर झुमके  के साथ झूमेंगे बाल भी, हम भी...

झूमती हवाएँ


#अपर्णा वाजपेयी

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