धागे का दु:ख


मजदूर के तन पर चढ़ा उतरन
खुशी में भूल जाता है अम्मा की उंगलियों का स्वाद,
करघा खड़ा है गांव के बाहर
कपास सिर धुन रही है मिल की तिजोरी में,
का से कहूं दुखवा मैं धागे का,
मिलान में रेड कार्पेट पर चलती हसीनाएं और उनका शरीर
न जाने आजकल गंध क्यों मारते हैं,
बाबू के माथे का पसीना
जब - जब गिरा है करघे की डोरों पर,
यह देश मेहनत की खुशबू में डूब गया है।

©️अपर्णा बाजपेई

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर प्रिय अपर्णा!! धागे के मजदूर की महिमा गाती भावपूर्ण रचना प्रिय अपर्णा।
    ये पसीने की सुंगध मेहनत का श्रृंगार है---
    यही कहूँगी--
    मेहनत की खुशबू से
    होती गुलज़ार दुनिया,
    चलाके जिसके काँधे पे,
    इतराती कर कारोबार दुनिया,
    उसी को रौंद पकड़ लेती
    फिर रफ़्तार दुनिया!!
    हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई🌹❤

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    उत्तर
    1. प्रिय रेनू दी,
      आपके स्नेह के लिए हृदयतल से आभार
      सादर

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2022...वक़्त ठहरता नहीं...) पर गुरुवार 28 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!




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    उत्तर
    1. रचना को मान देने के लिए सादर आभार आदरणीय रवींद्र जी

      हटाएं
  3. विचारोत्तेजक भी । हृदयस्पर्शी भी । अभिनंदन आपका ।

    जवाब देंहटाएं

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