तुम बस थोड़ा जोर से हंसना
तुम बस थोड़ा जोर से हंसना इतनी जोर से कि दिमाग में यह ख्याल रत्ती भर भी ना आए कि हंसने से आंखों के नीचे उभर आती हैं झुर्रियां , कि गालों पर उम्र की रेखाएं थोड़ी ज्यादा पैनी नज़र आती हैं , कि हंसने पर तुम्हारे दांत थोड़े पीले दिखते हैं , बस हंसना और महसूसना उस खुशी को जो हंसने में तुम्हें महसूस होती है , अपने चेहरे की बनावट, उम्र का असर और अनुभव की सुर्ख़ियों को कुछ देर के लिए भूल जाना , हंसना कि हंसने से रोशन होती है सारी फिज़ा , मिट जाता है गुबार, आसमान का रंग थोड़ा और नीला हो जाता है और धरती! थोड़ी और हरी।। ©अपर्णा बाजपेई
शानदार प्रस्तुति. थोड़े से अल्फ़ाज़ काफ़ी है मौजूदा परिवेश की तस्वीर सामने रखने के लिये. रचनाकार का दायित्व है कि हालात का दस्तावेज़ी ज़िक्र प्रस्तुत करे.
जवाब देंहटाएंसटीक चिंतन से परिपूर्ण असरदार रचना.
बधाई एवं शुभकामनायें.
ब्लॉग सेतु से पता चला आज आपका जन्म दिवस है.
जन्म दिवस की मंगलकामनाएें.
लिखते रहिये.
आदरणीय रवीन्द्र जी, इतनी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिये सादर आभारी हूं.साहित्य समय का साक्षी है यही सोच कर समय को लिखना चाहती हूं. आप जैसे लोग जब प्रशन्शा के दो शब्द भी बोलते हैं तो और लिखने का उत्साह प्रबल होता है .शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद
हटाएंBahut achhi prastuti.
जवाब देंहटाएंजनन दिन की शुभकामनाएँ हालाँकि देरी से ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना कुछ शब्दों में सदी की बात ... सत्य का सामना ज़रूरी है