पत्थर होना भी आसान नहीं होता. #Rock
तमाम बहस मुबाहिसों को भुलाकर
हम पत्त्थर हुए थे,
सोचा था
उगने न देंगे एक भी भाव कमजोरी का,
एक भी पल याद न करेंगे
अपना जख्म,,
अगर उगने लगेगी घास मुझ पर;
नमी नहीं सोकने देंगे उसे.
न ही पड़ने देंगे परछाई फूलों की,
मिट्टी की परत जब जब जमेंगी
बारिश को बुला
तहस –नहस करा देंगे उसका अस्तित्व........
पर पत्थर बनना आसान
न था!
बची रह ही गयी
थी नमी
कंही
और शायद मिट्टी भी........
उड़ आए
बीज कंही से;
कि लाख कोशिशों के बावजूद
उग ही आये कुछ अंकुर
बातें करने लगे हवा से
नाता जोड़ लिया इस धरा से,
गगन से और इंसानों से.......
और हम!
अपनी कोशिशों में भी हारते रहे.....
कि पत्थर होना भी आसान
नहीं होता..
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जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया लोकेश जी.ब्लोग पर आगे भी आपका इन्तजार रहेगा.सादर आभार
हटाएंप्रिय अपर्णा ---- आज आपके लेखन का नया रंग देखकर बहुत अच्छा लग रहा है |पत्थर के भीतरी जड़ भावों को स्वर देती रचना अपने आप में अनुपम है |सचमुच पत्थर यही सोचता होगा | भले ना सोचे पर कवि मन जड़ चीजों में भी संवेदना की कल्पना कर उसे विशिष्ट बना देता है | आपकी रचना को समर्पित मेरे कुछ भाव -----------
जवाब देंहटाएंप्रेम , करुणा से नही अनजान हम -
सभ्यताओं की उम्दा पहचान हम .
कुछ ख्वाब अपने भीतर भी हैं -
हैं पत्थर भले बेजान हम --
एक दिन कोई कला का दीवाना आयेगा
अपने सधे हाथों का हुनर हम पे आजमाएगा
बुत बन सजेगे चौराहे पर
या होंगे किसी मंदिर के भगवान हम !!!
सुंदर लिखा आपने -- शायद पत्थर होना इतना आसान कहाँ होता होगा !!!!!!
आपको मेरी सस्नेह शुभकामना प्रिय अपर्णा | अपना लेखन निखारती रहिये |
प्रिय रेनू दी, आपकी इतनी प्यार भरी प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूं. आप जैसे लोग ही नये को आगे badhne का रास्ता देते हैं. आपका आशीर्वाद इसी प्रकार मिलता रहे यही आकांक्षा है. सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर लिखा आपने अपर्णा जी। लेखनी का नया रूप आपने दिखाया बहुत ही सराहनीय रचना। पत्थर
जवाब देंहटाएंहोना भी आसान नहीं...गर एहसास है ज़िदा पत्थर कभी बेजान नहीं।
प्रिय श्वेता जी, आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है. आपके सुझाव, सराहना मुझ जैसे अद्ना रचनाकार के लिये प्रेरणापुंज होते हैं. कृपया अपनी प्रतिक्रिया से मार्गदर्शन करती रहें. सादर आभार
हटाएंअपर्णा जी दिल की गहराइयों तक छूती है आपकी रचना का हर शब्द
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 27 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंश्वेता जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए सादर आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंThank you Sir!
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर !
अपर्णा जी के कल्पनालोक में सृजन के बीज बहुत गहरे बोये गए हैं। पत्थर को सजीवता प्रदान करने में सफल आपकी रचना वैचारिक धरातल पर संवाद स्थापित करती है।
लिखते रहिये ; हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत सुंदर प्रस्तुति अपर्णा जी। सही कहा पत्थर होना भी आसान नही हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदिल को पत्थर सा बनाने की कोशिश...
जवाब देंहटाएंताकि कोई समझ न सके इसकी कमजोरी,
नहीं ये नादान फिर पिघले किसी पे....
पत्थर सा कठोर बना रहे हर मुश्किल में
परन्तु पत्थर बनना भी आसान नहीं होता....
मुश्किलों और कठोरताओं को तो सहन कर लिया
परन्तु प्रेम का मधुर अंकुर जब फूटा....
पिघला पत्थर पुनः दिल सा बन टूटा ।
बहुत ही सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति आपकी....
वाह!!!!
ये हार है या जीत ... ये कहना भी आसान नहीं आज के कठोर सत्य को देखते हुए ... पर इस कोशिश में इंसान बन सकें तो कितना अच्छा हो ... गहरे भाव लिए रचना ...
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २५ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!!बहुत खूबसूरत लिखा आपने ,सही है पत्थर होना आसान कहाँ .
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