अंत हुआ तो ख़ाली दामन
फूल यूं मुस्कुराये कि गिर गए
शाख़ को गमज़दा छोड़कर,
तितलियां आजकलनहीं आती
झर रहीं पत्तियां बेसबब यूं ही।
रात तूफ़ां ने यूं क़यामत की
झुग्गियां उजड़ी, मर गयी साँसे,
गिर गए ईमान संग दरख़्त कितने
कब्र खोदी और छुप गयीं खुशियां।
धूप की चिन्दियाँ यूं बिखरी हैं
जैसे सोना बिछा हो धरती पर,
मुट्ठियाँ बांधता मुसाफ़िर जब
धूप साये सी हाँथ नहीं आती ।
वजन में दो गुनी हुईं बातें
काफ़िले हाकिमों के घेरे हैं,
गिनती निवालों की हो रही है यहाँ
जिनसे उम्मीद वो मुंह को फेरे हैं।
कोठियां भर गयी हैं नोटों से
दिल है सूना के नींद नहीं आती,
उम्र भर लूटता रहा दौलत
आज लगता के हाँथ खाली है।
(Image credit google)
गहरी पीड़ा भरी भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या
बहुत बहुत आभार आदरणीय कुसुम दी
हटाएंसादर
पीर तुम्हारी मन को छू जाए
जवाब देंहटाएंरचना तोरी इस कदर मन भाए
सुंदर रचना
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं