अगले साल फिर दो अक्टूबर आने वाला है!


आज मोचीराम ने जूतों पर पोलिश नहीं की,
चेहरे  पर पोलिश लगाए घूम रहे हैं,
हंस रहे हैं....
हे हे हे हो हो हो .....
जूतों को क्या चमकाना!
जब चेहरों की चमक गायब है,
फटे जूतों को सिलकर क्या होगा:
उतने में नए खरीद लो
चाइना माल है न;
एक का दस, एक का दस .......
हम!
अरे हम तो कामगार हैं,
मशीनों के आगे बेकार हैं,
हुनर गया तेल लेने .......
जाओ दस में पांच जोड़ी लाओ,
पूरे घर को पहनाओ ,
हमारे बच्चों का एक फाका और सही!
तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था में...
अर्थ उनका है,
व्यवस्था हमारी,
माल उनका,
बाज़ार हमारा...
वे अपना कचड़ा यंहा जमा कर रहे हैं,
हम उस कचड़े पर ऐश कर रहे हैं....
हमारे आदमी ले जाओ,
पैसा दे जाओ,
आदमी का क्या मोल?
यंहा हर आदमी टका सेर बिकता है,
वाचाल राजा आँखों पर पट्टी बाँध सोता है,
हुनरमंद हाँथ ट्रेनों में लटका है,
मीडिया की चकाचौंध में असली मुद्दा सटका है,
गांधी का रामराज चरखे का चक्कर लगाता है,
खीझता है ,थकता है, बेहाल हो बैठ जाता है,
सत्य और अहिंसा किताबों में बंद है,
गांधी अब संग्रहालय की शान है,
महापुरुषों की पुण्यतिथियों पर श्रद्धांजलि का बोलबाला है,
अगले साल फिर दो अक्टूबर आने वाला है..............

(image credit google) 













टिप्पणियाँ

  1. सटीक और सार्थक संदेश देती आपकी कृति..

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया, पम्मी जी, ब्लॉग पर आने और प्रतिक्रया देने के लिए.सादर

      हटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 94वीं पुण्यतिथि : कादम्बिनी गांगुली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को बुलेटिन में स्थान देने के लिये आपका सादर आभार हर्ष जी.

      हटाएं
  3. वाह...सार्थक संदेश बहुत प्रेरक पोस्ट...

    जवाब देंहटाएं

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