राम और रहीम दोनों ने मर्यादा में रहना सिखाया, समाज के नियमों का हमेशा पाठ पढ़ाया, जब जब मानवता पर आंच आयी दोनों ने इंसान को कमर कसना सिखाया। अब न राम की मर्यादा है, न रहीम की इंसानियत साधुओं में भर गयी है सिर्फ हैवानियत, मठों में, आश्रमों में पाप का बोलबाला है ऊपर ऊपर सादगी अंदर गड़बड़झाला है. धर्म के नाम पर पाप रचा जाता है, सीधा सादा इंसान जाल में फंस जाता है, पैसा है पिस्टल है , प्रशाशन पर दबदबा है, साधुओं की मंडी में, इंसान उल्टे पैर टंगा है. अब गुरु नहीं गुरुवाणी के पास जाओ , रामायण और कुरान के पाठों में खो जाओ, वहीं राम है, वंही रहीम है, वंही धर्म है, वंही यकीन है, अपनी आँखें खोलो ,खुद रास्ता खोजो जो चाहोगे खुदबखुद मिल जाएगा नहीं मिला, तो भी तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा।