मृत्यु के बाद एक पल
उसने लरजते हुए हांथों से मेरी ओर एक लिफ़ाफा बढ़ाया उस वक्त उसकी आंखों में वह नहीं थी, मैने सोचा, क्या ही हो सकता है! उस पल, जब होंठों पर बर्फ़ की सिल्ली रख जाय, कहीं कुछ ऐसा तो नहीं; जो वापसी का दरवाज़ा खोल दे. उधार की आंखों से मैने उसे कांपते हुए देखा लिफाफा मेरी उंगलियों से टकरा चुका था, खुद पर नंगा होने की हद तक बेशर्मी डालने की कोशिश कर लिफ़ाफा खोलते हुए मैने देखे; सिर के कटे हुए कुछ बाल उसके बच्चे के, उस पल बर्फ फिर बरसी आसमां से नहीं आंखों से ।। PC Wikipedia @मानव कौल की बातचीत सुनते हुए
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 19-10-2017 को प्रातः 4 :00 बजे प्रकाशनार्थ 825 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका आदरणीय.
जवाब देंहटाएंसादरl`}
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली!
शुक्रिया कविता जी.
हटाएंआपको भी दीपावली की शुभकामनायें.
सुंदर रचना । आपको एवं आपके पूरे परिवार को दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएं