स्टेशन पर बाल दिवस (लघुकथा)
कल छुट्टी मिलेगी साहब , राजू ने सकुचाते हुए पूछा। कैसी छुट्टी? "परसो ही तो आया है तू काम पर वापस और फिर छुट्टी माँगने लगा.अब क्या काम आ गया". सेठ फूलचंद ने रुपए गिनते हुए कहा. राजू कुछ देर चुपचाप खड़ा रहा फिर बोला।अच्छा साहब आधा दिन की छुट्टी दे दीजियेगा, मै रात में सारा काम निपटा दूंगा" राजू ने आवाज में थोड़ी हिम्मत भरकर कहा. सेठ फूलचंद ने इस बार राजू को गौर से देखा और बोले ," देखो राजू तुम मुझे सच सच बताओ तुम्हे छुट्टी किस लिए चाहिए। हो सकता है मै तुम्हे पूरे दिन की छुट्टी दे दूँ." सेठ फूलचंद इस बार थोड़े प्यार से बोले।
साहब कल मेरे सारे दोस्त चाचा नेहरू का जन्मदिन मनाना चाहते हैं. मेरे सब दोस्त कल काम से छुट्टी लेकर एक साथ इकट्ठे होंगे। फिर हम उत्सव शुरू करेंगे। सेठ फूलचंद को थोड़ा अजीब लगा. ये मलिन बस्ती में रहने वाले बच्चे जो स्कूल जाते नहीं हैं बाल दिवस क्यों और कैसे मनाएंगे? सेठ जी बोले ," राजू तुम तो स्कूल जाते नहीं हो , फिर चाचा नेहरू का जन्म दिन कैसे मनाओगे। जानते भी हो नेहरू जी कौन थे?
राजू हंसने लगा. क्या साहब, आपको इतना भी नहीं पता. हम स्कूल नहीं जाते तो क्या हुआ. बाल दिवस तो सब बच्चों के लिए होता है। कल रेडियो में एक दीदी बता रहीं थी कि चाचा नेहरू हमारे देश के पहले प्रधान मंत्री थे और सब बच्चों से प्यार करते थे, केवल स्कूल जाने वाले बच्चों से ही नहीं। तो सब बच्चों को उनका जन्म दिन मनाना चाहिए। मेरी बस्ती के सब बच्चे कल रेलवे स्टेशन पर जाकर प्लेटफॉर्म को साफ़ करेंगे और गिफ्ट बांटेंगे। लेकिन इतने गिफ्ट तुम लोग कंहा से लाओगे ? सेठ ने आश्चर्य चकित होकर पूछा।
राजू बोला," साहब, हम सब दोस्त रोज रात में काम से वापस जाने के बाद लिफाफे ( ठोंगा /पेपर बैग ) बनाते हैं और उनको दुकानों पर बेंच देते हैं। जिससे हमें कुछ पैसे मिल जाते हैं। हमने सोचा है आज रात में हम जितने भी लिफाफे बनाएंगे वो स्टेशन पर आने जाने वाले बच्चों को एक -एक लिफाफा गिफ्ट में देंगे और उनसे कहेंगे कि वो लोग जब भी कोइ सामान खरीदें प्लास्टिक बैग न मांगे।
इस तरह कल स्टेशन पर हम सब दोस्त पूरा दिन साथ में रहेंगे और साथ में काम करेंगे . मजा भी आएगा और सफाई भी हो जाएगी। हमारे लिए तो दोस्तों के साथ रहना और अपनी मर्जी से काम करना ही उत्सव है साहब!
"क्या ये सब चाचा नेहरू को अच्छा नहीं लगेगा साहब " राजू ने बड़ी मासूमियत से पूछा। सेठ फूल चंद ने प्यार से राजू के गाल थपथपाये और कहा," जाओ राजू तुम्हारी अभी से छुट्टी। मना लो बाल दिवस अपने दोस्तों के संग अपनी मर्जी से। तुझे स्कूल की क्या जरूरत। तू तो खुद ही चलता - फिरता स्कूल है और हाँ इस छुट्टी के पैसे भी नहीं कटेंगे".
बाल दिवस शुरू हो चुका था राजू की ज़िंदगी में भी और सेठ की ज़िंदगी में भी।
(pic credit google)
Behad sakaratmak sandesh de rahi hai ye kahani. Hum ummidon me zindagi ki chhoti-chhoti khushiyan hawan karte rahte hain jabki khushiyan to inme hi hoti hain.
जवाब देंहटाएंअप्रतिम। wahh👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक। बहुत शानदार। आपकी कलम सार्थकता का सृजन कर रही है।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-11-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2789 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद