आओ हम थोड़ा सा प्रेम करें महसूसें एक दूसरे के ख़यालात , एहसासों की तितलियों को मडराने दें फूलों पर , कुछ जुगुनू समेट लें अपनी मुट्ठियों में और ...... रौशन कर दें एक दूसरे के अँधेरे गर्त , आओ बाँट लें थोड़ा-थोड़ा कम्बल , एक दूसरे के हांथों का तकिया बना बुलाएं दूर खड़ी नींद , ठिठुरती रात में एक दूसरे के निवालों से दें रिश्तों को गर्माहट . आओ हम थोड़ा सा प्रेम करें बाँट लें आसमान आधा-आधा खिलखिलाएं एक दूसरे के कन्धों पर बेलौस , आओ हम सहेज लें अपने आप को एक दूसरे में.... भूख , प्यास , दर्द , बेबसी , लाचारी को परे धकेल कारवां बनाएं अपने प्रेम का...... आओ हम थोड़ा सा प्रेम करे इससे , उससे , खुद से कि.... प्रेम ही दे सकता है उम्मीद इस सृष्टि के बचे रहने की. (Picture credit google)